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खामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा
[गा० १२७भवन्ति। एकस्मिन् जीचे आहारं गृहति सवि अनन्तानग्तजीवाः साधारणं समान सदर्श समकालं गृह्णन्ति । एकस्मिन् जीवे यासोच्छ्वास गृहति सति अनन्तानन्त जीवाः साधारणं सहर्श समकाले श्वासोवास गृहन्ति । एकस्मिन् जीवे शरीर गृति सति अनन्तानन्तजीवाः शरीरे गृहन्ति मुञ्चन्ति च । एकस्मिन् जीवति सति अनन्तानन्तजीवा जीवन्ति भियन्ते नाले साधारणजीवाः कथ्यन्ते । सर्वभूतानी येषाम् । अनन्तानन्तप्रमाणानाम् । तपथा। यत्साधारणजीवानाम् उत्पन्न प्रथमसमये भाहारपर्याप्तिः, तस्कार्य चाहारवर्गणायातपुद्गलस्कन्धानां स्खलरसभागपरिणमनं साधारण सहर्श समकाल च भवति । १ । तथा शरीरपर्याप्तिः, तत्कार्य चाहारवर्गणायातपुद्रलस्कन्धानां शरीराकारपरिणमन साधारण सदर्श समकालं च भवेत् । २१ तथा इन्द्रियाप्तिः, तत्कार्य च स्पर्शनेन्द्रियाकारेण परिणमनम् ।।भानपानपर्याप्तिः, तस्कार्य चोच्चासनिःश्वासप्रहणं साधारण सदृशं समकाल भवति । ४ । तथा गोम्मटेसारे साधारणलक्षणं प्रोक्तं च । आहार, श्वासोष्छास, शरीर और आयु साधारण यानी समान होती है । अर्थात् उन अनन्तानन्त जीवों का पिण्ड मिलकर एक जीवके जैसा हो जाता है अतः जब उनमेंसे एक जीव आहार ग्रहण करता है तो उसी समय उसीके साथ अनन्तामन्त जीव आहार ग्रहण करते हैं। जब एक जीब र लेता है तो जशी रस्य श साग जगमग जीव श्वास लेते हैं। जब उनसे एक जीव मरकर नया शरीर धारण करता है तो उसी समय उसीके साथ अनन्तानन्त जीव वर्तमान शरीरको छोड़ कर उसी नये शरीरको अपना लेते हैं। सारांश यह है कि एकके जीवन के साथ उन सब का जीवन होता है और एककी मृत्युके साथ उन सबकी मृत्यु हो जाती है इसीसे उन जीवोंको साधारण जीव कहते हैं। इसका और भी खुलासा इस प्रकार है साधारण वनस्पति कायिक जीव एकेन्द्रिय होता है। और एकेन्द्रिय जीवके चार पर्याप्तियों होती हैं आहार पर्याप्ति, शरीर पर्याप्ति, इन्द्रिय पर्याप्ति और श्वासोच्छ्रास पर्याप्ति । जब कोई जीव जन्म लेता है तो जन्म लेने के प्रथम समयमें आहार पर्याप्ति होती है, उसके बाद उक्त तीनों पर्याप्तियाँ एकके बाद एकके क्रमसे होती हैं। आहार वर्गणाके रूपमें ग्रहण किये गये पुद्गल स्कन्धोंका खल भाग और रस भाग रूप परिणमन होना आहार पर्याप्तिका कार्य है । खल भाग और रस भागका शरीर रूप परिणमन होना शरीर पर्याप्तिका कार्य है । आहार वर्गणाके परमाणुओंका इन्द्रियके आकार रूप परिणमन होना इन्द्रिय पर्याप्तिका कार्य है । और आहार वर्गणाके परमाणुओंका श्वासोच्छास रूप परिणमन होना वासोच्छास पर्याप्तिका कार्य है। एक शरीरमें रहनेवाले अनन्तानन्त साधारण कायिक जीवोंमें ये चारों पर्याप्तियां और इनका कार्य एकसाथ एक समयमें होता है । गोम्मटसार जीवकाण्डमें साधारण वनस्पति कायका लक्षण इस प्रकार कहा है- 'जहाँ एक जीवके मर जाने पर अनन्त जीवों का मरण हो जाता है और एक जीवके शरीरको छोड़ कर चले जाने पर अनन्त जीव उस शरीर को छोड़ कर चले जाते हैं वह साधारण काय है । वनस्पति कायिक जीर दो प्रकारके होते हैं-एक प्रत्येक शरीर और एक साधारण शरीर । जिस वनस्पतिरूप शरीरका वा एक ही जीव होता है उसे प्रत्येक शरीर कहते हैं । और जिस वनस्पति रूप शरीरके बहुतसे ! समान रूपसे स्वामी होते है उसे साधारण शरीर कहते हैं। सारांश यह है कि प्रत्येक वनस्पति तो एक जीवका एक शरीर होता है । और साधारण वनस्पति, बहुतसे जीवोंका एक ही शरी होता है। ये बहुतसे जीव एक साथ ही खाते हैं, एक साथ ही श्वास लेते हैं। एक साथ ही मरते हैं और एक साथ ही जीते
सर्वत्र 'गोमति पाठः।