SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ I - १२३] १०. लोकानुप्रेक्षा भवन्ति । अपूकायिका जीवा बादराः सूक्ष्माश्च भवन्ति । तेजस्कायिका जीवा वादराः सूक्ष्माथ सन्ति । बालुकायिका जीवा बादराः सूक्ष्माश्च भवन्तीत्यर्थः । पञ्चमाः पृथिव्यादिसंख्यया पचमत्वं प्राप्ताः वनस्पतयः द्विविधा द्विप्रकाराः । कुतः । साधारणप्रत्येकात साधारणच नस्पति प्रत्येक वनस्पति मेदात् । ये तु साधारणधनस्पति कार्यिकारते निलचतुर्गतिनिगोदजीवाः बादराः सूक्ष्माश्च भवन्ति । ये प्रत्येकवनस्पत्तिकामिका जीवास्ते तु बादरा एव न तु सूक्ष्माः ॥ १२४ ॥ अथ साधारणानां द्विविघत्वं दर्शयति साहारा वि दुबिहा अइ-काला ये साइ-काला य । ते वि' य बादर-सुमा सेसा पुर्णे बायरा सबे ॥ १२५ ॥ ६३ [ छाया - साधारणाः अपि द्विविधाः अनादिकालाः च सादिकालाः च । ते अपि च पादरसूक्ष्माः शेषाः पुनर्बादराः सर्वे ॥ ] साधारणनामकर्मोदयात् साधारणाः साधारणनिगोदा, मपि पुनः, द्विविधा द्विप्रकाराः । ये के प्रकाराः । अनादिकालाश्च सादिकालाच नित्यनिगोदाश्वतुर्गतिनिगोषाश्च । च शब्दः समुचयार्थः । ये चि त एव निष्प'चतुर्गतिनिगोदजीवा बादरसूक्ष्माः बादरसूक्ष्मनामकर्मोदयं प्राप्नुवन्ति । पुनः शेषाः सर्वे प्रत्येकवनस्पतयः द्वीन्द्रियादमथ सर्वे समस्ता बादरा एव ॥ १२५ ॥ अथ तेषां निगोदानां साधारणत्वं कुत इति चेदुच्यते साहारणाणि जेसिं आहारुस्सास- काय आऊणि । ते साहारण- जीवा णंताणंत-प्यमाणाणं ॥ १२६ ॥ - साधारण नाम [छामा - साधारणानि येषाम् आहारोच्छास काय आधि । ते साधारणजीवा मनन्तामन्तप्रमाणानाम् ॥ ] येवो साधारणनामकर्मोदय वशवर्त्यनन्तानन्दजीवानां निगोदानाम् आहारोच्छ्वासकायायूंषि साधारणानि सदृशानि समकामानि वे किसी आधारसे रहते हैं । किन्तु सूक्ष्मजीव बिना किसी आधारके समस्त लोक में रहते हैं ॥ १२३ ॥ अर्थ-पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक और वायुकायिक जीव बादर मी होते हैं। और सूक्ष्म मी होते हैं। पाँचवे वनस्पतिकायिकके दो भेद हैं-साधारण और प्रत्येक ॥ १२४ अब साधारण वनस्पतिकायके दो भेद बतलाते हैं । अर्थ साधारण वनस्पति काय के दो भेद है - अनादि साधारण वनस्पति काय और सादि साधारण वनस्पति काय । ये दोनों प्रकार के जीव बादर भी होते हैं और सूक्ष्म भी होते हैं। बाकी के सब जीव बादरही होते हैं। भावार्थ-र कर्म के उदय से साधारण वनस्पतिकायिक जीव होते हैं, जिन्हें निगोदिया जीव भी कहते हैं । उनके भी दो भेद हैं- अनादिकालीन और आदिकालीन । अनादिकालीन साधारण वनस्पति कायको नित्य निगोद कहते हैं और सादिकालीन वनस्पति कायको चतुर्गति निगोद कहते हैं। ये नित्य निगोदिया और चतुर्गति निगोदिया जीव भी बादर और सूक्ष्मके भेदसे दो प्रकारके होते हैं। जिन जीवोंके बादर नाम कर्मका उदय होता है वे बादर कहलाते हैं और जिन जीवोंके सूक्ष्म नाम कर्मका उदय होता है वे सूक्ष्म कहलाते हैं । दोनों ही प्रकारके निगोदिया जीव बादर भी होते हैं और सूक्ष्म भी होते हैं । किन्तु बाकी सब प्रत्येक वनस्पति कायिक जीव और द्वीन्द्रिय आदि त्रस जीव बादर ही होते हैं ॥ १२५ ॥ अब यह बतलाते हैं कि वे निगोदिया जीव साधारण क्यों कहे जाते हैं । अर्थ- जिन अनन्तानन्त जीवका भहार, श्वासोच्छ्वास, शरीर और आयु साधारण होती है उन जीर्वोको साधारणकायिक जीव कहते हैं । भावार्थ - जिन अनन्तानन्त निगोदिया जीवोंके साधारण नाम कर्मका उदय होता है उनकी १ क ग अगाव कम का सार काकाई । १ ब से पुणु बाहर से चिय ४ पुशु ५ गर्छ ।
SR No.090248
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumar Swami
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages589
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy