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________________ -६७] ३. संसारानुप्रेक्षा ३१ पनदेवः पिता, तस्यापि वेश्या माता, तेन मे पितामही सा।।धनदेवस्य तथापि सा मातृत्वात् ममापि माता ।। मतभार्यात्वात् सा मे सपानी।४। धनदेवो मस्सपत्नीपुत्रत्वात् ममापि पुत्रस्तद्वाशेरवान् मधीया सा वेश्या वधूः । ५ । अई धनदेवभार्थी तस्य सा माता सेन में श्वभूः । ६। एतच्छ्रुत्वा वेश्याधनदेवकमलावरुणादयः हातवृतान्ताः जातस्मरीभूताः प्रतिबुद्धाः तपो गृहीत्वा च खग गता इति धनदेवादिष्टान्तकथा ॥६४-६५॥ बच पञ्चविधा संसारस्य नामानि निर्दिशति संसारो पंच-विहो दवे खेत्ते तहेव काले य। भव-भमणो य चउत्थो पंचमओ भाव-संसारो ।। ६६ ॥ [छाया-संसारः पञ्चविधः द्रव्ये क्षेत्रे तथैव काले च । भवभ्रमणश्च चतुर्थः पञ्चमकः भाषसंसारः ॥] संसरणं (संसारः परिवर्तन भ्रमणमिति यावत् पञ्चविधः पञ्चप्रकारः । प्रथमो दृष्यसंसार१, द्वितीयः क्षेत्रसंसारः २, तब तृतीयः कालसंसारः ३, च पुनः चतुर्थो भवभ्रमणः भवसंसारः ४, पञ्चमो भावसंसार: ५॥६६॥ अथ प्रथमदव्य. परिवर्तनखरूप निरूपयति बंधदि मुंचंदि जीवो पडिसमयं कम्म-पुग्गला विविहा । णोकम्म-पुग्गला वि य मिच्छत्त-कसाय-संजुत्तो ॥ ६७॥' पुत्र हो । २ मेरे भाई धनदेवके पुत्र होनेसे तुम मेरे भतीजे हो । ३ तुम्हारी और मेरी माता एक ही है, अतः तुम मेरे भाई हो । ४ धनदेवके छोटे भाई होनेसे तुम मेरे देवर हो । ५ धनदेव मेरी माता वसन्ततिलकाका पति है, इसलिये धनदेव मेरा पिता है। उसके भाई होनेसे तुम मेरे काका हो। ६ मैं वेश्या वसन्ततिलकाकी सौत हूँ । अतः धनदेव मेरा पुत्र है । तुम उसके भी पुत्र हो, अतः तुम मेरे पौत्र हो। यह छह नाते बच्चेके साथ हुए। आगे-१ वसन्ततिलकाका पति होनेसे धनदेव मेरा पिता है । २ तुम मेरे काका हो और धनदेव तुम्हारा भी पिता है, अतः वह मेरा दादा है | ३ तथा वह मेरा पति भी है । ४ उसकी और मेरी माता एक ही है; अतः धनदेव मेरा भाई है । ५ मैं वेश्या वसन्ततिलकाकी सौत हूँ और उस वेश्याका वह पुत्र है; अतः मेरा भी पुत्र है । ६ वेश्या मेरी सास है, मैं उसकी पुत्रवधू हूँ और धनदेव वेश्याका पति है; अतः वह मेरा श्वशुर है । ये छह नाते धनदेवके साथ हुए । आगे--१ मेरे भाई धनदेवकी पत्नी होनेसे वेश्या मेरी भावज है । २ तेरे मेरे दोनोंके धनदेव पिता हैं और वेश्या उनकी माता है; अतः यह मेरी दादी है। ३ धनदेवकी और तेरी भी माता होनेसे वह मेरी भी माता हैं । ४ मेरे पति धनदेवकी भार्या होनेसे वाह मेरी सौत है | ५ धनदेय मेरी सौतका पुत्र होनेसे मेरा भी पुत्र कहलाया। उसकी पत्नी होनेसे वह वेश्या मेरी पुत्रवधू है। ६ मैं धनदेवकी स्त्री हूँ और वह उसकी माता है; अत: मेरी सास है | इन अट्ठारह नातों को सुनकर वेश्या, धनदेव आदिको भी सब बातें ज्ञात होजानेसे जातिस्मरण हो आया । सभीने जिनदीक्षा लेली और मरकर स्वर्ग चले गये । इस प्रकार एक ही भवमें, अट्ठारह नाते तक होजाते हैं, तो दूसरे भावकी तो कथा ही क्या है ? ॥ ६४-६५ ॥ अब पाँच प्रकारके संसारके नाम बतलाते हैं। अर्थ-संसार पाँच प्रकारका होता है-द्रव्यसंसार, क्षेत्रसंसार, कालसंसार, भवसंसार और भावसंसार || भावार्थ-परिभ्रमणका नाम संसार है, और द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भावके निमित्तसे वह पाँच प्रकारका होता है ।। ६६ ।। पहले द्रव्य परिवर्तन या द्रव्यसंसारका १ बम भवणो। २ ब मुच्चदि । ३ गाभाम्ते बम'वे'।
SR No.090248
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumar Swami
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages589
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size19 MB
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