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________________ ३. संसारानुप्रेक्षा . पुसो वि भाउ जाओ सो चिय भाओ वि देवरो होदि । ...माया होदि सक्सी अणणो वि य होदि' भत्तारो ॥ ६४॥ यम्मि भने एमेशभा होति पय-जीनस । अण्ण-भये किं भण्णइ जीवाणं धम्म-रहिदाणं ॥ ६५ ॥ युगलम् [छाया-पुत्रोऽपि भ्राता जातः स एव भ्रातापि देवरः भवति । माता भवति सपनी जनकोऽपि च भवति मर्ता॥ एकस्मिन् भवे एते संबन्धाः भवन्ति एकजीवस्य । अन्यभवे किं भव्यते जीवानां धर्मरहितानाम् ॥1 एकजीवस्य एक प्राणिनः एकस्सिव भवे जन्मनि एते पूर्वोक्ताः संबन्धा भ्रातपुत्रादिरूपेण संयोगाभवन्ति जायन्ते । के। पुत्रः तनुजः प्राता चान्धवो जानः अभूत् । सोऽपि च भ्राता देव भवति । माता जननी सपनी भर्तृभार्या भवति । जनकोऽपि व पितापि भत्ता बलभो भवति । अन्यभवे परभवे धर्मरहिताना किं भव्यते कि कप्यते । वसन्ततिलकायाः वेश्यायाः धनदेवस्य कमलायाश्च एते पूर्वोका दृष्टान्ताः ॥ सत्तं च । मालवदेशे उध्वमिन्यो राजा विश्वसेनःश्रेष्ठी मुदत: बोरशकोरिद्रष्यस्वामी, वसन्ततिलका वैश्या। सा सुदन गृहवासे भूता। सार्षिणी सती वण्डकाशश्वासादिरोगाकान्ता म त्यता। खएहे सा वसन्ततिलका बालयुगले पुनं पुत्री प्रसूता । उमिया रनकम्बलेनावृत्य दक्षिणदिशि प्रस्तोल्यां सा कमला पुत्री मुक्ता। प्रयागवासिसुकेतुसार्थवाहेन सुप्रभाप्रियायाः दत्ता । तथैवोत्तरदिकि प्रतोयो पुत्रो धनदेवो मुक्तः सन् साकेतपुरस्थसुभद्रेण सुबतायाः दाः । पूर्वोपार्जितापात् सयोः धनदेवकमलयोः दम्पतीरवं जातम् । धनदेव उजयिन्या व्यापारार्थ गतः तया पसन्ततिलकया वेश्यया सह हुन्धः । ततस्तयोर्वष्णनामा बालो जातः । कमलया श्रीमुनिवः पृeः । तेन श्रीमुनिदत्तेन सर्वः संबन्धः कथितः । कथं तत् । उज्जयिन्यां विप्रः सोमशर्मा, भार्या काश्यपी, और वह भरकर अपने अशौचालयके विष्ठामें सफेद कीड़ा हुआ। पुत्रने जैसे ही उसे देखा और वह उसे मारनेको प्रवृत्त हुआ, वह कीड़ा विष्ठामें घुस गया | संसारकी यह विचित्रता देखकर पुत्रको बड़ा अचरज हुआ और वह विचारोंमें डूब गया । संसारकी यह स्थिति कितनी करुणाजनक है ॥ ६३ ॥ अब कहते हैं कि एक ही भवमें अनेक नाते हो जाते हैं । अर्थ-पुत्र भी माई होता है । वह भाई भी देवर होता है। माता सौत होती है । पिता भी पति होता है । जब एक जीवके एकहीं मवमें ये नाते होते हैं, तो धर्मरहित जीवोंके दूसरे भवमें कहना ही क्या है ? भावार्थ-जैन शास्त्रोंमें अठारह नातेकी कथा प्रसिद्ध है। उसी कथाके प्रमुख पात्र धनदेव और पात्री वसन्ततिलका वेश्या तथा उसकी पुत्री कमलाके पारस्परिक सम्बन्धोंको लेकर उक्त बातें कही गई हैं । कया इस प्रकार है-मालवदेशको उज्जैनी नगरीमें राजा विश्वसेन, सेठ सुदत्त और वसन्ततिलका वेश्या रहती थी। सेठ सुदत्त सोलह करोड़ द्रव्यका खामी था । उसने बसन्ततिलका बेश्याको अपने घरमें रखलिया । वह गर्भवती हुई और खाज, खाँसी, श्वास आदि रोगोंने उसे घेर लिया । तब सेठने उसे अपने घरसे निकाल दिया । अपने घरमें आकर वसन्ततिलकाने एक पुत्र और एक पुत्रीको जन्म दिया । खिन्न होकर उसने --- --- -. .- -- --. १लम स ग विय। २ ल म सगोद। ३ एषा गाथा ल-पुस्तके नास्ति । ४ इस गाथाके अनन्तर नीचे लिखा हुआ अधिक पाड, जैसा मिला, लिखा है। 4-"वसंततिलयाथाणदेवपउमावणि त्यि दिखता । माया मति जय देवरो सिपुत्तो सि पुसपुतो सि । पिरब्बर सि बालय दोसि तत्तकणं ॥ ६६ ॥ तुझ पिया मम भाया ससरो पुत्तो पाय जगणो य । तह य पियाम हो। वालमत्तणन्थकेणं ।। ६७५ माया य तुज्श वालय मम जपणी साय सचकी या दुभाउजवा य चियामही य इत्येष जाया या ॥६६॥1 मवसंततिघ्या चणदेवपउमाणाणि दिटुंता वालाय णिसूणहि क्यणं तुसरिसई टुति अदुदह नसा ॥६५॥ पुरा भत्तीजउ भाउ देवरु पित्तिय पुत्तो भो ।। ६६ ।। तुलु पियरो म पियरीयामोतार हवा भत्तारो। मायउता बि पुत्तो ससुरु इवय [] पालया मज्झ ।। ६७ || तु जणणी तुर भजा पियाम हि ता य मायरी। सबई हवा बा वा सा सुघ कहिया भट्टदहणत्ता ।। ६८।। ५ल संबंधा जायंले उत्पचन्त। ६फ देवर भत्रनुमो भवति ।
SR No.090248
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumar Swami
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages589
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size19 MB
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