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________________ 96 सर्वज्ञको न माननेवाले चार्वाक, भट्ट आदि मतों का निराकरण सर्वशोकधर्मके दो भेद, उनमेंसे भी गृहस्थधर्मके १२ भेद और धर्मके वसवों का कथन भावकर्मके १२ भेदोंके नाम सम्यक्त्वकी उत्पत्तिकी बचता उपशम सम्यक्त्व और क्षायिक सम्यक्त्वका स्वरूप काललब्धि आदिका स्वरूप दर्शन मोहनीयके क्षयका विधान उपशम और क्षायिक सम्यक्त्वकी स्थिति तथा दोनों में विशेषता वेदकसम्यक्त्वका स्वरूप क्षयोपशमका लक्षण सम्यक्त्व प्रकृतिके उदयसे होनेवाले चलादि दोषोंका विवेचन - कार्त्तिकेयानुप्रेक्षा क्षायोपशमिक सम्यक्त्वकी स्थितिका खुलासा औपशमिक और क्षायोपशमिक सम्यक्त्व, अनन्तानुबन्धीका विसंयोजन और देशगतको प्राप्त करने और छोड़ने की संख्या नौ गाथाओंके द्वारा सम्यग्दृष्टिके तत्त्वश्रद्धानका विवेचन मिध्यादृष्टिका स्वरूप कोई देवता किसीको लक्ष्मी आदि नहीं देता पृष्ठ २१३ २१४ २१५ 11 २१६ २१७ २१८ 59 २१९ 17 २२० २२० २२१ २२१-५ २२५ यदि भक्ति से पूजने पर व्यन्तर देव लक्ष्मी देते हैं तो धर्म करना व्यर्थ है । २२६ 37 सम्यग्दृष्टि जानता है कि जिनेन्द्रने जैसा जाना है जैसा अवश्य होगा उसे कोई टाल नहीं सकता । जो ऐसा जानता है वह सम्यग्दृष्टि है और जो इसमें सन्देह करता है वह मिध्यादृष्टि है । तीन गाथाओंसे सम्यक्त्व के माहात्म्यका प्रथम अणुव्रतका स्वरूप अहिंसा के पांच प्रतिचार यमपाल चाण्डालकी कथा दूसरे अणुव्रतका स्वरूप अणुव्रतसत्यके पांच अतिचार धनदेवकी कथा तीसरे अचौर्यातका स्वरूप अचौर्याणुव्रत के पांच अतिचार वारिषेणकी कथा चौथे श्रह्मचर्याणुत्रतका स्वरूप ब्रह्मचर्याशुवत पांच अतिचार नीलीकी कथा कथन २२९ सम्यक्त्वके पच्चीस गुणोंका विवेचन २३०-१ सम्यक्त्व ६३ गुणों का विवेचन २३२ श्रावकके दूसरे भेद दर्शनिकका स्वरूप २३४-५ प्रतिक श्रावकका स्वरूप २३६ २३७ २३८ २३८-९ पांचवे परिग्रहपरिमाणाणुवत का स्वरूप परिग्रहपरिमाणके पांच अतिचार समन्तभद्रस्वामी मतसे जयकुमारकी कथा दिग्विरति नामक प्रथम गुणवतका स्वरूप दिविरतिके पांच अतिचार पृष्ठ 19 २२७ २२८ २४० २४१ २४२-३ २४२ २४३ २४३ २४४ २४५ २४६ 33 २४७ 23 २४८ २.४९ ।
SR No.090248
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumar Swami
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages589
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size19 MB
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