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अनुमान मी नय है।
नय
द्रव्यार्थिक नयका स्वरूप द्रव्यार्थिक नायके दस भेद
पर्यायार्थिक नया स्वरूप
पर्यायार्थिक नयके छै भेद
नैगम नयका स्वरूप
संग्रह जयका स्वरूप
व्यवहार नयका स्वरूप
ऋजुसूत्र नयका स्वरूप
शब्दनयका स्वरूप
समभिरूढ नयका स्वरूप
भूत नया स्वरूप
नयोंके द्वारा व्यवहार करनेसे लाभ
का श्रवण मनन आदि करनेवाले मनुष्य विरल हैं ।
तत्त्वको जाननेवाला मनुष्य श्री वशमें कौन नहीं है, इत्यादि प्रभ उक्त प्रभौका समाधान
लोकानुप्रेक्षाका माहात्म्य ११ बोधिदुर्लभानुप्रेक्षा
जीव अनन्तकाल तक निगोदमें रहकर
विषय सूची
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गति दुःख भोगता है । दुर्लभ मनुष्य पर्याय पाकर मी पाणी म्लेंछों मे जन्म लेता है ।
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प्रथिवी कायादिमें जन्म लेता है । २०४ पर्यायी दुर्लभता
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पर्याय में मी पश्चेन्द्रिय होना दुर्लभ है। पचेन्द्रिय होकर भी संज्ञी होना दुर्लभ २०६ संज्ञी होकर भी नरक गति और तिर्यन
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आर्यवंश में जन्म लेकर मी उत्तम कुल
मिलना दुर्लभ है। उत्तम कुल पाकर मी धनहीन होता है । धनी होकर भी इन्द्रियोंकी पूर्णता होना दुर्लभ है। इन्द्रियोंकी पूर्णता होने पर भी शरीर रोगी होता है ।
नीरोग शरीर पाकर भी अल्पायु होता है और दीर्घजीवी होकर भी व्रतशील धारण नहीं करता
शीलवान होकर भी साधु समागम
दुर्लभ है। साधुसमागम पाकर भी सम्यक्त्वकी
प्राप्ति दुर्लभ है ।
सम्यक्त्वको धारण करके भी चारित्र
धारण नहीं करता और चारित्र धारण करके मी उसे पालने में असमर्थ होता है ।
रत्नत्रय धारण करके भी सीव्र कषाय करनेसे दुर्गतिनें जाता है । मनुष्य पर्यायको अतिदुर्लभ जानकर मिध्यात्व और कषायको छोड़ना चाहिये ।
१२ धर्मानुप्रेक्षा सर्वदेवका स्वरूप
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२१० देवपर्याय में शील और संयमका अभाव है ।,, मनुष्यगतिमें ही तप ध्यानावि होते हैं । २११ ऐसा दुर्लभ मनुष्य जन्म पाकर मी जो विषयों में रमते हैं वे अज्ञानी हैं । रत्नत्रय में आदर भाव रखनेका
उपदेश
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