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अतीत, अनागत, और वर्तमानपर्यायोंकी संख्या
द्रव्यमें कार्य कारण भावका कथन प्रत्येकवस्तु अनन्त धर्मात्मक है। अनेकान्तवाद, स्याद्वाद, और सप्त
मंगीका स्वरूप अनेकान्तात्मक वस्तु ही कार्य
कारी है । सर्वथा एकान्तरूप वस्तु कार्यकारी
नहीं है । नित्यैकान्तवादमें अर्थ क्रियाकारी
नहीं बनता । अनेकान्तवाद ही कार्यकारण
भाव बनता है ।
अनादिनिधन जीवमें कार्यकारण
भावकी व्यवस्था
नहीं बनता । क्षणिकैकान्तवाद में अर्थ क्रियाकारी
- कार्तिकेयानुप्रेक्षा
पृष्ठ
१५७ - १५८
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१५८ - १५९
सत् का स्वरूप
उत्पाद और व्ययका स्वरूप द्रव्य ध्रुव कैसे है।
द्रव्य और पर्यायका स्वरूप गुणका स्वरूप द्रव्योंके सामान्य और विशेषगुण द्रव्य गुण और पर्यायोंका एकत्वही वस्तु है ।
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स्वचतुष्टयमें स्थित जीवद्दी कार्यको करता है १६४ जीवको परस्वरूपस्थ माननेमें हानि श्रह्माद्वैतवाद में दूषण
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तत्त्वको अणुरूप मानने में दूषण
द्रव्यमें एकत्व और अनेकत्वकी व्यवस्था
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पर्यायके भेद और उनका स्वरूप कथन १७३ द्रव्यमें विद्यमान पर्यायोंकी उत्पत्ति मानते में दूषण अमिन पर्योच ही होती है। द्रव्य और पर्यायों में भेदाभेद सर्वथा भेद माननेमें दूषण ज्ञानाद्वैतवादमें दूषण शून्यवादमें दूषण
arm पदार्थ वास्तविक है ।
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सामान्यज्ञानका स्वरूप
केवलज्ञानका स्वरूप
ज्ञान सर्वगत होते हुए भी आत्मा में ही रहता है । ज्ञान अपने देशमें रहते हुए ही श्रेयको जानता है ।
मन:पर्यय ज्ञान और अवधिज्ञान
देशप्रत्यक्ष है ।
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भतिज्ञान प्रत्यक्ष मी है और परोक्ष भी है।,, इन्द्रियज्ञानका विषय
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मतिज्ञानके ३३६ भेदका विवेचन इन्द्रियज्ञानका उपयोग कमसे होता है । १८४ वस्तु अनेकान्तात्मक भी है और
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एकान्त रूप भी है। यष्टिसे अनेकान्त स्वरूपका विवेचन १८६ अनेकान्तके प्रकाशक श्रुतज्ञानका स्वरूप १८७ ताके भेद रूप नयका स्वरूप १८८ नय वस्तुके एक धर्मको कैसे कहता है । १८९ अर्थनय, शब्दनय और ज्ञाननयका विवेचन
सुनय और दुर्नयका विवेचन अनुमानको स्वरूप
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