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## Chapter 14
**From the perspective of time, there are three types of Mithyatva:** (1) Anadi-Anant, (2) Anadi-Sant, (3) Sadi-Sant.
**Anadi-Anant Mithyatva** is experienced by Abhavya Jivas, **Anadi-Sant Mithyatva** by Bhavya Jivas, and **Sadi-Sant Mithyatva** by Jivas who fall from a higher Gunasthan to a lower Gunasthan.
**The Stananga Sutra also mentions ten types of Mithyatva:**
(1) Buddhi of Dharma in Adharma, (2) Buddhi of Adharma in Dharma, (3) Buddhi of Marg in Unmarg, (4) Buddhi of Unmarg in Marg, (5) Buddhi of Jiva in Ajeeva, (6) Buddhi of Ajeeva in Jiva, (7) Buddhi of Sadhu in Asadhu, (8) Buddhi of Asadhu in Sadhu, (9) Buddhi of Murta in Amurta, (10) Buddhi of Amurta in Murta.
**In addition to these ten types mentioned in the Agamas, there are fifteen more types of Mithyatva, including five types like Abhighahik, and ten types like Laukik.** These are not independent types but rather explanations of the ten types of Mithyatva. Their names are as follows:
(1) Abhighahik, (2) Anabhighahik, (3) Abhiniveshik, (4) Sanshayik, (5) Anabhogik, (6) Laukik Mithyatva, (7) Lokottar Mithyatva, (8) Kuprovachinak Mithyatva, (9) Nyun Mithyatva, (10) Adhik Mithyatva, (11) Vipreet Mithyatva, (12) Akriya Mithyatva.
**1. Ten types of Mithyatva are mentioned in the Stananga Sutra:**
* Buddhi of Dharma in Adharma
* Buddhi of Adharma in Dharma
* Buddhi of Marg in Unmarg
* Buddhi of Unmarg in Marg
* Buddhi of Jiva in Ajeeva
* Buddhi of Ajeeva in Jiva
* Buddhi of Sadhu in Asadhu
* Buddhi of Asadhu in Sadhu
* Buddhi of Murta in Amurta
* Buddhi of Amurta in Murta
**- Stananga 101734**
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१४
कमंस्तव
काल की विवक्षा से मिथ्यात्व के निम्नलिखित तीन भेद होते हैं(१) अनादि-अनन्त, (२) अनादि-सान्त, (३) सादि-सान्तः ।
इनमें मे अनादि-अनन्त मिथ्यात्व अभव्य जीव को, अनादि-सान्त भव्य जीव को और सादि-सान्त उच्च गुणस्थान को पतित होकर निम्न गणस्थान पर आने वाले जीव को होता है ।
स्थानांग सूत्र में मिथ्यात्व के निम्न प्रकार में दस भेद भी बताये हैं
(१) अधर्म में धर्म की बुद्धि, (२) धर्म में अधर्म की बुद्धि, (३) उन्मार्ग में मार्ग की बुद्धि, (४) मार्ग में उन्मार्ग की बुद्धि, (५) अजीव में जीव की बुद्धि, (६) जीव में अजीव की बुद्धि, (७) असाधु में साधु की बुद्धि, (८) साधु में असाधु की बुद्धि,. (6) अमर्त में मूर्त की बुद्धि (१०! मन में समर्ड की बुद्धि ।'
आगम में वर्णित इन दसों भेदों के अतिरिक्त मिथ्यात्व के आभिग्राहिकादि पाँच तथा लौकिकादि दस-शे पन्द्रह भेद और भी मिलते हैं। वे स्वतन्त्र भेद न होकर इन्हीं दस प्रकार के मिथ्यात्वों का स्पष्टीकरण करने वाले हैं। उनके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं
(१) आभिग्रहिक, (२) अनाभिग्रहिक, (३) आभिनिवेशिक, (४) सांशयिक, (५) अनाभोगिक, (६) लौकिकमिथ्यात्व, (७) लोकोत्तर मिथ्यात्व, (८) कुप्रावचिनक मिथ्यात्व, (६) न्यून मिथ्यात्व, (१०) अधिक मिथ्यान्व, (११) विपरीत मिथ्यात्व, (१२) अक्रिया मिथ्यात्व,
१. दसविहे मिच्छत्ते पण्णते, तं जहा-अधम्मे धम्मसण्णा, धम्मे अधम्म
सण्णा, अमरगे मग्गसपणा, मग्गे उम्मम्मसण्णा, अजीबेसू जीपसण्णा, जीवेसु अजीवसण्णा, असाहुसु साहुसण्णा, साहुसु असाहसण्णा, अमुससु मुत्तसपणा, मुत्तेमु अमुप्तसण्णा ।
-स्थानांग १०१७३४