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________________ कर्मप्रकृतिः { २१८[ २१८. सम्यग्मिथ्यादृष्टिनाम तृतीयगुणस्थानम् | सम्यमिथ्यात्वप्रकृतेरहंदुपदिष्टसन्मार्गे मिथ्यात्वादिकल्पितदुर्मार्गेच श्रद्धावान् जीवः सम्पग्मिध्यादृष्टिरिति तृतीयगुणस्थानवर्ती भवति । [ २१९. नुतीयगुणस्थानस्य स्थितिः ] सद्गुणस्थाने उत्तरगत्यायुबंन्धो मरणं मारणान्तिकसमुद्घातगुणवतमहावतग्रहणं च नास्ति । यदा म्रियते तदा सम्यक् मिथ्यावं वा प्रतिपद्य म्रियते सम्पमिथ्यात्वे न म्रियते। सम्यमिथ्यास्वपरिणामापूर्वस्मिन्सम्यक्त्वे वा मिथ्यात्वे वा परभवायुबन्धे तवेवासंयतसम्यग्दृष्टिगुणस्थानं वा मिथ्यावृष्टिगुणस्थानं वा प्राप्य नियत इत्यर्थः। २१७. साराादन गुणस्थानका समय उसका जघन्य काल एक समय तथा उत्कृष्ट षडावलि मात्र है ! उसके बाद नियमसे मिथ्यात्व' प्रकृतिका उदय होनेके कारण मिथ्यादृष्टि हो जाता है। २१८. सम्यग्मिच्यादृष्टि नामक तृतीय गुणस्थान सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृतिके उदयसे अर्हन्त द्वारा उपदिष्ट सन्मार्ग में तथा मिथ्यात्व आदि कल्पित दुर्मार्ग में श्रद्धान करनेवाला जीव सम्यग्मिथ्यादृष्टि नामक तृतीय गुणस्थानवर्ती होता है। २१२. तृतीय गुणस्थानको स्थिति इस गुणस्थानमें आगेको गतिके लिए आयु बन्ध, मरण, मारणान्तिक समुद्घात तथा अणुव्रत या महाव्रतका ग्रहण नहीं होता। जब मरता है तो सम्यक्त्व अथवा मिथ्यात्वको प्राप्त करके मरता है। सम्यग्मिथ्यात्वमें नहीं मरता । अर्थात् सम्यग्मिथ्यात्व परिणामसे पहले सम्यक्त्व अथवा मिथ्यात्वमें परभवकी आयुका बन्ध होनेपर उसी असंयत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान अथवा मिथ्यादृष्टि गुणस्थानको प्राप्त करके मरता है।
SR No.090237
Book TitleKarmaprakruti
Original Sutra AuthorAbhaynanda Acharya
AuthorGokulchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages88
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size1010 KB
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