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________________ -२०२] [ २०७. पायोपशमलब्धिः ] तद्यथा कदाचित्कस्यचिज्जीवस्याशुभकर्मणामनुभागः प्रतिसमयमनन्तगुणहान्युवेति, इति तेषां सर्वघातिस्पर्धकानामनन्तगुणहानि विधाय तवन्यस्य सववस्था उपशमः, अनन्तहोनानुभागोदये सत्यपि क्षयो पशम इत्युच्यते । तस्य लम्धिः क्षयोपलब्धिः । [ २०१. त्रिशुद्धिलब्धिः ] क्षयोपशमलब्धौ सत्यामुत्पन्नस्सातादिप्रशस्तप्रकृतिबन्धकारणं जीवस्य यो विशुद्धिपरिणामस्तल्लाभो विशुद्धिलब्धिः। [ २०२. देशनालब्धिः ] पदयपञ्चास्तिकायसप्ततत्त्वनवपदार्थानामुपदेशकारकाचार्योपाध्याय वेशनालाभः, उपदेशकरहितक्षेत्र पूर्वोपविष्ट ओवादितत्त्वधारणस्मरणलाभो वा देशमालविधः। २००. क्षयोपशमलब्धि कभी किसी जीवके अशुभ कर्मोका अनुभाग प्रतिसमय अनन्त गुण हानि क्रमसे उदित्त होता है। इस प्रकार उन सर्वघाति स्पर्धकोंको अनन्त गुणहानि करके उस द्रव्यका सदवस्था रूप उपशम अनन्त होन अनुभागके उदय होनेपर भी क्षयोपशम कहलाता है। उसकी लब्धि क्षयोपशमलब्धि है। २०१. विशुद्धिलब्धि सातादि प्रशस्त प्रकृतियोंके बन्धका कारण जीवका जो विशुद्धि परिणाम क्षयोपशम लब्धिके होनेपर उत्पन्न होता है उसका लाभ विशुद्धिलब्धि है।
SR No.090237
Book TitleKarmaprakruti
Original Sutra AuthorAbhaynanda Acharya
AuthorGokulchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages88
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size1010 KB
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