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________________ : नोकर्म [ १९०. नोकर्मणः लक्षणम् ] औदारिकवैक्रियकाहारकर्तेज सशरीरपरिणमन पुद् गल स्कन्धा नोकर्म द्रव्याणि । [ १११. संसारिजीवस्य लक्षणम् ] एवंविधद्रव्यभाव नोकर्मसंयुक्ताः गतिषु परिवर्तमान जीवास्संसारिणः । पञ्चविध संसरण परिणताश्चतसृषु [ १९२. मुक्तजीवस्य लक्षणम् ] तत्कर्म श्रयमुक्तास्सिद्धगताववस्थिताः क्षायिकसम्यक्त्वज्ञानदर्शनवीर्यसूक्ष्मत्वावगाहनागुरुलघुत्वाव्याबाधरूपा गुणपरिणताः सिद्धपरिमेष्ठितो जोवा मुक्ताः । १९०, नोकर्मका लक्षण ओदारिक, वैक्रियक, आहारक तथा तेजस शरीर के रूपमें परिणत पुद्गल स्कन्ध नोकर्म द्रव्य हैं । १९१. संसारी जीवका लक्षण इस प्रकार द्रव्य कर्म, भाव कर्म तथा नोकर्मसे युक्त, पाँच प्रकारके परिवर्तनों में परिणत तथा चार गतियों में भ्रमण करते हुए जीव संसारी हैं । ११२. मुक्त जीवका लक्षण उक्त तीन प्रकारके कर्मोंस मुक्त, सिद्ध गति में स्थित, क्षायिक सम्यक्त्व क्षायिक ज्ञान, क्षायिक दर्शन, क्षायिक वीर्य, सूक्ष्मत्व, अवगाहनत्व, अगुरुलघुत्व तथा अव्याबाधस्वरूप अष्ट गुण परिणत सिद्ध परमेष्ठी मुक्त जीव है ।
SR No.090237
Book TitleKarmaprakruti
Original Sutra AuthorAbhaynanda Acharya
AuthorGokulchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages88
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size1010 KB
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