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________________ कमप्रकृतिः [१५८० अन्तरायम् [१५८. अन्तरायकर्मणः पञ्च भेदाः ] दानलाभभोगोपभोगवीर्याश्रयभेवायसरायकर्म पञ्चधा। [ १५९. दानान्तरायस्य लक्षणम् ] तत्र दानस्य विघ्नहेतुर्दानान्तरायम् । [ १६०. लाभान्तरायस्य लक्षणम् ] लाभस्य विन्नहेतु भान्तरायम् । [ १६१. भोगान्तरायस्य लक्षणम् ] भुक्त्वा परिहातव्यो भोगस्तस्य विघ्नहेतु गान्तरापम् । १५८. अन्तराय कर्मके भेद दानान्तराय, लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्त राय तथा वीर्यान्तरायके भेदसे अन्तराय कर्म पांच प्रकारका है। १५९, दानान्तरायका लक्षण दानके विघ्नका कारण दानान्तराय होता है । १६०, लाभान्तरायका लक्षण लाभके विघ्नका कारण लाभान्त राय है । १६१. भोगान्तरायका लक्षण जो एक बार भोग कर छोड़ दिया जाता है उसे भोग कहते हैं । भोगोंके अन्तरायका कारण भोगान्तराय है।
SR No.090237
Book TitleKarmaprakruti
Original Sutra AuthorAbhaynanda Acharya
AuthorGokulchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages88
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size1010 KB
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