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कर्मकृति
१०५. असं प्राप्त पटिकासंहननस्य लक्षणम् |
यतः परस्परासंबद्धास्थिबन्धो भवति तदसंप्राप्तसृपाटिका संहननं
नाम ।
| १०६. वर्णनामकर्मणः पञ्च भेदाः ।
श्वेतपीतहरितारणकृष्ण भेदाद् वर्णनाम पञ्चधा ।
[ १०७. वर्णनामकर्मणः सामान्यलक्षणम् ]
ततत्स्वस्वशरीराणां श्वेतादिवर्णान्यत्करोति तद्वर्णनाम |
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| १०८. गन्धनामकर्मणः ही भेदी | सुगन्धदुर्गन्धभेदाद गन्धनाम द्वेधा ।
| १०९. गन्धनामकर्मणः लक्षणम् |
स्वस्वशरीराणां स्वस्त्रगन्धं करोति यत्तद् गन्धनाम ।
१०५. असंप्रापाटिका संहननका लक्षण
जिसके कारण अस्थिबन्ध परस्पर असम्बद्ध होता है, उसे असम्प्राप्तस्पाटिका संहनन कहते हैं ।
१०३. वर्ण नामके पांच भेद
देत, पीत, हरित, अरुण तथा कृष्णके भेदसे वर्णं नाम पाँव प्रकारका है ।
१०७. वर्ण नाम कर्मका सामान्य लक्षण
अपने-अपने शरीरका श्वेत आदि वर्णं जिसके कारण होता है, उसे वर्ण नाम कहते हैं ।
१०८. गन्ध नाम कर्मके दो भेद
सुगन्ध और दुर्गन्ध के भेदसे गन्ध नाम दो प्रकारका है ।
१०९. गन्ध नाम कर्मका सामान्य लक्षण
अपने-अपने शरीरकी गन्ध जिस कारण होती है, उसे गन्ध नाम कहते हैं।