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श्री कल्याणमंदिर स्तोत्र सार्थ
heart is spoken of as ambrosia: fo:, by drinking it, the Bhavyas who relict; participate in the supreme joy, quickly attain the status of permanent youth and immorlality (21)
__ मधुरफलप्रदायक स्वामिन् सुदूरमवनम्य समुत्पतन्तो,
___ मन्ये वदन्ति शुचयः सुरचामरौधाः । ये 5 स्म नति विदधत मुनिपुङ्गवाय,
ते न नमूर्ध्वमतयः खलु शुद्धभावाः ॥२२॥ दुरते चार-चवर 'अमरों से, नीचे से ऊपर जाते । भन्यजनों को विविधरूप से, विनय सफल वे दर्शाते ॥ शुद्धभाव से नतशिर हो जो, तव पदाज में झुक जाते। परमाद्ध हो ऊध्वंगतो को, निश्चय करि भविजन पाने ।।
लोकार्थ-हे समवसरणलक्ष्मीमशोभितदेव ! जब देवगण प्राप के कपर चंवर ढोरते हैं तब वे पहिले नीचे की ओर झुकते हैं और बाद में ऊपर की ओर जाते हैं मानो वे जनता को यह ही सूचित करते हैं कि जिनेन्द्रदेव को 'झुक झुक कर नमस्कार करने वाले व्यक्ति हमारे समान ही ऊपर को जाते हैं मर्थात् स्वगं या मोक्ष पाते हैं ॥२२॥
( यह चंवर प्रातिहार्य का वर्णन है) कहहिं सार तिहुंलोक को, ये सुरचामर दोय । भावसहित जो जिन नमें, तसु गति अरष होय ।।
१–यों द्वारा २-मस्तक झुका कर ३-चरणकमल