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यत्र मत्र ऋद्धि प्रादि सहित
[ ४७ १२-ॐ ह्रीं ग्रहणमो पणलभयवज्जयाणां दसपुरवीणं'।
मंत्र-ॐ ह्रां ह्रीं हह ह्रौं ह्रः सिमाउसा वांछित मे कुरु कुरु स्वाहा।
विधि-श्रद्धापूर्वक इस महामंत्र का १२५००० सवा लाख वार जप करने से समस्त मनोवांछित कार्यों की सिद्धि होती है।
Power nf the great is unimagioable.
Wh Maste: cw d: ... ... ...। Tesort to Thee soon CToss the ccean of births ( and deaths) with the grealest ease, wheti they carry in their heart, Thee, that excessively heavy (dignified )? Or why, prowess of the great is incomprehetisible. (12)
जलमिष्टताकारक क्रोधस्त्वया यदि विभो ! प्रथमं निरस्तो,
ध्वस्तास्तदा 'वद कथं किन कर्मचौराः ? | प्लोपत्य मुत्र यदि वा शिशिरा ऽपि लोके,
नील माणि विपिनानि न कि हिमानी ?॥१३ क्रोध-शत्रु को पूर्व शमन कर, शान्त बनायो मन-प्रागार । कर्म-धोर जीते फिर किस विध, हे प्रभु अचरज प्रपरम्पार ।।
१-दशपूर्वधारी जिनों को नमस्कार हो। २-रत-इत्यपि पाठः। नाश कर या खपा कर ।
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