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भक्त्या न ते अति महेश। दयां विधाय
श्री कल्याणमन्दिर स्तोत्र सार्थ
दुखाङ्कुरीयननन्परतां विधेति ॥ ३ ॥
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त्वं नाथ। दुःखिजनवत्सल ! हे शरण्य!
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श्लोक ३०
ऋद्धि-ॐ ह्रीं नई मो सता (चा?) वरिएगु ( ? )
विजं ।
मन्त्र - नमो भगवते ( अमुकस्य ) सर्वश्वरशान्ति कुरु कुरु स्वाहा'
गुण-- सर्वज्वर तथा सति दूर होता है। भूर्जपत्र पर मंत्र लिख कर रोगी के कएउ में धूप देकर बांध देवे ।
फल – पद्मखण्ड नाम की नगरी में इन्द्रप्रभ ने इस स्तोत्र के ३६ लोकसहित इस मंत्र को सिद्ध करके इसके प्रभाव के देशों मनुष्यों को पीश दूर को थी ।
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