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________________ 4 जातोऽस्मि तेन जनबान्धव । दुःखपात्र, यन्त्र मन्त्र ऋद्धि पूजन आदि सहित यस्मात्किया प्रतिफलन्तिन भावशून्या दे बीडा हृदय छ०२२१० तुल्ये व ड्रा ही देन्स न सं ele महा पी the Souz af र बा र जी ने [REE बाराव्य आकर्षितोऽपि महितोऽपि निरीक्षतोऽपि श्लोक ३८ ऋद्धि-ॐ ह्रीं महं रामो हि (ट्टि ?) मिट्टि (ट्टि ? ) मरकं ( भक्स्वं ? ) कराए | मन्त्र-ॐ जानवा ( जनेवा ) न्हारणापहारिण्यं भगवत्ये खारी देव्यै नमः स्वाहा | गुण--महरुवा, जनेवा, उदर तथा हृदय की पीड़ा नष्ट होती है । होली की राख को उक्त मंत्र से २१ बार मंत्रित कर रोग दूर होने तक प्रतिदिन उससे झाड़े फल --- काशीपुर नगर के शिवम ब्राह्मण ने मुनिप्रदत्त इस मंत्र की साधना द्वारा चक रोगों से पीड़ित मनुष्यों की पीड़ा दूर की थी।
SR No.090236
Book TitleKalyanmandir Stotra
Original Sutra AuthorKumudchandra Acharya
AuthorKamalkumar Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages180
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size2 MB
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