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आकर्णित नुं
श्री मन्दिरस्तोत्र सार्थ
किंवा विपदिषधी सविधं समेति ॥४५॥७
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श्लोक ३५
ऋद्धि की बहु रामो मिज्जतिजणासए ।
अस्मिन्त पाद्भवर्णादिनिधौ मुनीशः
मन्त्र -- ॐ नमो भगवति ( ते १ ) मिगियागदे अपस्मारे (मृग्युन्मादापस्मारादि ? ) रोगे ( ग ? ) शांतिं कुरु कुरु स्वाहा ।
गुण-- मृगी, जम्माद, अपस्मार और पागलपन यादि साध्य रोग शान्त होते हैं।
वरिक ने इस स्तोत्र के ३५
फल -- पाटलिपुत्र जगर के मिंग को साधना से बनेकों के मृगीरोग को दूर किया था।