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सान्निध्यतोऽपि यदि वा तव वीतरागण !..
यन्त्र मन्त्र ऋद्धि पूजन आदि सहित
नीरागनी ब्रजति को न सचेतनोऽपि ॥ २४॥
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उच्छला नद
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शितिद्युतिमण्डलेन,
श्लोक २४
ऋद्धि- ह्रीं भई रामो मागास ग ( गा ? ) मियाए । मन्त्र — ॐ ह्रीं भ्रां श्रीं षोडशभुजे (जाये ?) पद्म (शिन्यै ) ( ? ) हो नमः (स्वाहा ) |
गुण-हाथ से गया हुया प्रपमा राज्य दया स्थान पुनः प्राप्त होता है।
फल -- सालिसी नगर के राजा चन्द्रसेन ने शत्रु द्वारा बिमित प्रदेश पर इस स्तोत्र के २४ वें श्लोक सहित उक्त मन्त्र की प्राराधना से पुनः अपना स्वामित्व स्थापित किया था ।