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यन्त्र मन्त्र ऋद्धि पूजन आदि सहित
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ने ननम्यगतयः रचलु शुद्धभायाः ॥२०॥
येऽस्मै नतिं विदधने मुनिपुङ्गवाय,
स्वामिन्सुमवनभ्य समुन्यतन्ना
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श्लोक २२ ऋद्धि-ॐ ह्रीं मई णमो तरुष (प!) पणासए । मन्त्र- नमो पावत्यै मायूं नमः स्वाहा ।
गुरण -बन उपवन बिम वृक्षों में किसी कारण से फल लगमा पर हो जाते हैं उनमें पुन: मधुर फल पंवा होने लगते हैं।
फR-कौशाम्बी नगरी के समरिणदत राहो के उद्यान में राघव माली में एक मुमि द्वारा प्राप्त इस स्तोत्र के २२ ३ लोक सहित उक्त मन्त्र की साधना द्वारा फलरहित वृक्षों को मधुर फलदायक किया था।