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मनत् स्वमप्रभय मध्यविवर्तिनों
यन्त्र मन्त्र ऋषि पूजन सहित
यद् विग्रत् प्रशमयति महानुभावी : ।। १६ ।।
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अन्तः सदैव जिन यस्य विभा
श्लोक १६
ऋद्धि-ॐ ही आहे सभी रागभयपणासए ।
मन्त्र -- ॐ नमो गोरी ( गौर्यायें ? ) इन्द्रे (इन्द्राये ? ) ब (बज्रायें ? ) ह्रीं नमः स्वाहा ।
गुण- पर्वत पर भी उपसर्ग नहीं होता तथा बीहड़ बन में भी भय का नाश होता है।
फल- द्वारकापुरी नगरी में प्रदत्त अष्ठी ने जो कि दुष्ट डाकुओं द्वारा निर्जन वन में ले जाया गया था, कल्याणमन्दिर के १६ वें लोकसहित उक्त मन्त्र के चित्तवन से छुटकारा पाया था।