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यंत्र मंत्र ऋद्धि पूजन आदि सहित
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मभ्यागते वनशिपर्याण्डनि चन्दनम्य ॥१॥
सयो भुजङ्गलमया इय प्रध्यभाग
हदनिमि त्वयि विभो शिथिलीति,
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श्लोक
ऋद्धि-ॐ ह्रीं अह णमो उन्ह (ह') गदहारीए । मत्र-ॐ नमो भगवते मम सर्वाङ्गपीडाशांति कुरु
कुरु स्वाहा।
गुणः-१८ प्रकार का उपदंश, पित्तम्बर तथा सर्वप्रकार की उष्णता शान्त होती है ।
फल-श्रावस्ती नगरी का चण्डकेतु ब्राह्मण उपदंश की असह्य पीड़ा से मरणासन्न हो रहा था। पष्टमकाव्य-सहित उक्त मंत्र की प्राराधना से नवीन जीवन प्राप्त हश्रा या ।