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जिस प्रकार दिगम्बर भक्तामर स्तोत्र में २८ वें पथ से लेकर ३५ वें पद्य तक के ८ पद्यों में उनका वर्णन उपलब्ध है अन्यथा, श्वेताम्बर भक्तामर स्तोत्र की तरह इसमें भी चार ही प्रातिहार्यों (अशोकवृक्ष, पुष्पवर्षा, दिव्यध्वनि और चमर ) का कथन होना चाहिये था, किन्तु इसमें उन चार प्रतिहार्यो (सिंहासन, भामण्डल, दुन्दुभि और छत्र) का भी प्रतिपादन है जिनका दिगम्बर भक्तामर स्तोत्र में है और ताम्वर भक्तामर स्तोत्र में नहीं है। अतः इन बातों से इसे दिगम्बर कृति होना चाहिए ।
इसके रचयिता कुमुदचन्द्राचार्य का सामान्य प्रथवा विशेष परिचय क्या है और उनका समय क्या है ? इस सम्बन्ध में विद्वानों को विचार एवं खोज करना चाहिये । विक्रम की १२ वीं शताब्दी के विद्वान चादिदेवसूरि की जिन दिगम्बर विद्वान, कुमुदचन्द्राचार्य के साथ 'स्त्रीमुक्ति' आदि विषयों पर शास्त्रार्थ होने की बात कही जाती है, यदि वे ही कुमुदचन्द्राचार्य इस स्तोत्र के रचियता हैं तो इनका समय विक्रम की १२ वीं शताब्दी समझना चाहिए ।
अन्त में समाज के उत्साही विद्वान पं० कमलकुमार जी शास्त्री के प्रध्यवसाय की में सराहना करता हूँ कि जिन्होंने इस स्तोत्र को बहुपरिश्रम के साथ समाज के सामने इस रूप में प्रस्तुत किया है ।
इति शम् दरबारीलाल कोठिया,