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________________ ४४ जीवसमास विवेचन-योग का अर्थ- युज्यते इति योग:-योग अर्थात् जुड़ना। मन योग्य पुद्गलों को ग्रहण करके उन्हें मन रूप परिणमित कर मन को चिन्तन-मनन में जोड़ने वाला मनोयोग है। भाषा योग्य पुद्गलों को ग्रहण कर बोलना वचनयोग है तथा काय योग्य पुद्गलों को ग्रहण कर उनसे शरीर का निर्माण करना काय योग है। मनोयोग के चार प्रकार बताये जाते हैं। १. सत्य मनोयोग- पदार्थ जैसा है वैसा चिन्तन करना सत्य मनोयोग है। यथा जीव है. जीन शरीर परिमाण है आदि-आदि। २. असत्य मनोयोग-पदार्थ के अयथार्थ स्वरूप चिन्तन में लगा हुआ मन असत्य मनोयोग है। जैसे— जीव नहीं है, आत्मा शरीर परिमाण नहीं है आदि। ३. मिम मनोयोग-किसी मिन पदार्थ को एक साथ कहना। यथा मिले हुए मिश्री-नमक के इलों को मात्र मिश्री कहना। इसमें मिश्री को मिश्री कहना सत्य है पर नमक को भी मिश्री कह देना असत्य है। यह सत्यासत्य चिन्तन ही मिश्र पनोयोग है। ४. असस्य-अमृषा-जिन्हें सत्य या असत्य को कोटि में नहीं रखा जा सकता उन्हें अपना मया कहा " है ... नाना ने आदेशात्म भावों को इसी कोटि में रखा है। इसका विवेचन असत्यअमृषा वचनयोग में आगे करेंगे। अब वचनयोग के चार प्रकार बताते हैं-- १. सत्यभाषा-- पदार्थ जैसा है वैसा कहना सत्यभाषा है। २. असत्यभावा- पदार्थ जैसा है वैसा न कहना असत्य भाषा है। ३. मिनभाषा- जो पूर्णतः न सत्य है न पूर्णत: असत्य है यथाअश्वत्थामा हतो नरो या कुञ्जरो वा- यह मिश्रभाषा का उदाहरण है। ४. असत्य-अमृषाभाषा-असत्य-अमृषा के बारह प्रकार प्रज्ञापमा सूत्र के भाषापद २० में बताये गये है१. अज्ञापनीय -- आज्ञाकारी भाषा–यथा बिजली जला दो, उठो, बैठो, आदि। २. याचनीय _ -- याचना करने या मांगने की भाषा-यथा यह दे दो। ३. आमन्त्रणी ___ -- निमन्त्रण की भाषा—हमारे यहाँ पधारो। ४, पृच्छनीय -- पूछने की भाषा---क्या तुम अध्ययन करोगे? ५. उपदेशात्मक -- (प्रज्ञापनीय) झूठ नहीं बोलना चाहिए। ६. प्रत्याख्यानी -- किसी की मांग को अस्वीकार करना।
SR No.090232
Book TitleJivsamas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1998
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size5 MB
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