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________________ भाव द्वार २१७ तत्त्वार्थसूत्रकार ने गाँवों के पेद असून १ में) क्र... दो, नौ, अठारह, इक्कीस और तीन बताये हैं। वहाँ भाव पाँच बताये हैं जबकि 'जीव समास में छः बतलाये गये हैं। आठ कर्म में पाँच भाव उवसमिओ ब्रहओ मीसो य मोहजा भावा । दवसमरहियर घाइ होति उ सेसाई ओदइए । । २६६ ।। गाथार्थ – औदयिक, औपशमिक, क्षायिक तथा क्षायोपशमिक ये चारों भाव मोहनीय कर्म में होते हैं। औपशमिक के अतिरिक्त तीन भाव घाती कर्मों में होते हैं। शेष कर्म औदयिक होते हैं। विवेचन- गाथा में कथित औदयिक, औपशमिक क्षायिक तथा क्षायोपशमिक ये चारों भाव मोहनीय कर्म में होते हैं। औपशमिक के अतिरिक्त तीन भाव शेष घाती कर्मों में होते हैं, किन्तु शेष अघाती कर्म मात्र औदायिक हैं। १. औपशमिक भाव - यह भाव मोहनीय कर्म में होता है। प्रदेशोदय और विपाकोदय दोनों प्रकार से कर्मों का रूक जाना उपशम है। इस प्रकार का उपशम सर्वोपशम कहलाता है और यह सर्वोपशम मोहनीय कर्म का ही होता है, शेष का नहीं। औपशमिक भाव के दो भेद हैं १, सम्यक्त्व मोहनीय तथा २. चारित्र मोहनीय। ये दोनों मोहनीय कर्म के उपशम से ही होते हैं। 2 औपशमिक के अतिरिक्त शेष तीन भाव औदयिक क्षायिक तथा क्षायोपशमिक — ये शेष तीन भाव तीन कर्मों अर्थात् ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीय तथा अन्तराय में ही पाये जाते हैं, मोहनीय कर्म में नहीं। क्योंकि ऐसा सूत्र भी है- "मोहस्सेवोवसमो" कर्म ग्रन्थों में भी कहा हैं कि मोहनीय कर्म का हो उपशम होता है शेष का नहीं। J शेष चारों अघाति कर्मों अर्थात् वेदनीय, आयु, नाम तथा गोत्र में औदायिक भाव पाया जाता है क्योंकि चार घाती कर्मों का क्षय होने पर भी आयु आदि चार अघाती कर्मों का उदय अयोगी केवलावस्था तक रहता है। इस प्रकार ऑपशमिक भाव का स्पष्टीकरण कर चुके हैं। आगे शेष भावों को स्पष्ट करेगें। २. क्षायिक भाव- किसी कर्म के सर्वथा क्षय होने पर जो चैतसिक अवस्थाएँ प्रकट होती हैं उसे क्षायिक भाव कहते हैं। यह भाव नौ प्रकार का है। चार घाती कर्मों के क्षय से नौ लब्धियाँ प्रकट होती हैं जिनकी चर्चा गाथा २६७ में की गई है।
SR No.090232
Book TitleJivsamas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1998
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size5 MB
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