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________________ १६४ जीवसमास तथा अवरित सम्यग्दृष्टि आठ रज्जु की स्पर्शना करते हैं। सहस्रार तक के देव आठ रज्जु की, अच्युत तक के देव छः रज्जु की तथा अच्युत से ऊपर वाले देवलोक के असंख्यातवें भाग की स्पर्शना करते हैं। विवेचन - भवनपति आदि से लेकर ईशान देवलोक तक के देव मिध्यादृष्टि तथा सास्वादानी देव नवरज्जु'की स्पर्शना करते हैं। जब ये देव अपने मित्रादि के कारण तीसरी नरक में जाते हैं तब दो रज्जु का स्पर्श करते हैं और जब ये ईषत्प्राग्भार (सिद्ध शिला) आदि स्थान पर पृथ्वीकाय आदि में जन्म लेते हैं तो सात रज्जु का स्पर्श करते हैं। इस प्रकार ये कुल मिलाकर नौ रज्जु का स्पर्श करते हैं। सौधर्मादि देवलोक के देव भी मिथ्यात्व तथा सास्वादन गुणस्थान की उपस्थिति में तीसरी नरक पृथ्वी तक जाने के कारण साढ़े तीन रज्जु का तथा ऊपर ईषत्प्राग्भार तक पृथ्वीकाय आदि में जाने के कारण साढ़े पाँच रज्जु का स्पर्श करते हैं। इस प्रकार कुल नौ रज्जु का स्पर्श करते हैं। वनपति से ईशान तक के मित्र तथा सम्यग्दृष्टि जीव आठ रज्जु का स्पर्श करते हैं। यह आठ रज्जु नीचे में तीन नरक तथा ऊपर मे अच्युत देवलोक तक जानना। तीसरी नरक से अच्युत देवलोक आठ रज्जु परिमाण क्षेत्र हैं। सहस्रार के देव भी इन आठ रज्जु को ही स्पर्शित करते हैं। अच्युत देवलोक के देव तीर्थंकरादि को वंदना हेतु जाने से छः रज्जु का स्पर्श करते हैं। अल्पमोह के कारण वे तीसरी नरक में नहीं जाते हैं। किन्तु सीत्येन्द्र देव (सीता का जीव) अच्युत देवलोक से रावण एवं लक्ष्मण के खैर के शमनार्थं तीसरी नरक में गये थे, यह अपवाद ही हैं। तिर्थ एवं मनुष्य गति की स्पर्शना नरतिरिएहि य लोगो सत्तासावोहि छऽजयगिहीहिं । मिस्सेहऽसंखभागो विगलिंदीहिं तु सव्वजगं । । १९८ ।। गाथार्थ - मनुष्य तथा तिर्यञ्च सम्पूर्ण लोक का स्पर्श करते हैं। इनमें सास्वादनी सात रज्जु का, अविरत सम्यक्त्वी और देशविरत छः रज्जु का, मिश्र दृष्टि लोक के असंख्य भाग का तथा विकलेन्द्रिय सम्पूर्ण लोक का स्पर्शन करते हैं। विवेचन - केचली समुद्घात की अपेक्षा से मनुष्य तथा सूक्ष्म एकेन्द्रिय की अपेक्षा से तिर्यञ्च सर्वलोक को स्पर्शित करते हैं। सास्वादन, तिर्यञ्च तथा मनुष्य ईषत्प्राग्भार पृथ्वी में उत्पन्न होने से सात रज्जू का स्पर्श करते हैं।
SR No.090232
Book TitleJivsamas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1998
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size5 MB
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