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________________ स्पर्शन्-द्वार ५. देशविरति- देशविरति गुणस्थानवर्ती जोव यहाँ से मरकर अच्युत देवलोक में जन्म लेने के कारण छ: रज्जु परिमाण क्षेत्र की स्पर्शना करता है। प्रत्तसंय: माद गुणस्थानों में स्पर्शना संसेहऽ संखभागो फुसिओ लोगो सजोगिकेवलिहिं । एगाईओ भागो बीपाइस परगपुढवीसु ।। १९६।। गाथार्थ- शेष प्रमतसंयत आदि गुणस्थानवती जीव लोक के असंख्यातवें भाग का ही स्पर्श करते हैं, किन्तु सयोगी केवली सम्पूर्ण लोक का स्पर्श केवली समुद्धात की अपेक्षा से करते हैं। नरक आदि की दूसरी पृथ्वी में एक रज्जु (तीसरी में दो रज्जु- इस प्रकार क्रमश: सातवीं पृथ्वी में छ: रज्जु) की स्पर्शना जानना चाहिये। प्रमत्त, अप्रमत्त, अपूर्वकरण आदि गुणस्थानवी शेष सभी जीव लोक के असंख्यातवें भाग का ही स्पर्श करते हैं, क्याकि वे जीव विग्रहगति में संयमभाव को छोड़कर असंयमभाव को स्वीकार करते हैं। सयोगी केवली समुद्घात के चौथे समय में सम्पूर्ण लोक का स्पर्श करते हैं। नरक गति में स्पर्शना नरक आदि में “एकाधिकः" शब्द से दो, तीन, चार, पाँच और छ: रज्जु क्षेत्र ग्रहण करना चाहिए। लोक का चौदहवां अंशरूप भाग एक रज्जु के समतुल्य होता है। अब यदि कोई जीव दूसरी नरक से आता है या उसमें जाता है तो मध्यलोक से दूसरी नरक तक पहुंचने में वह एक रज्जु परिमाण क्षेत्र का स्पर्श करता है। ऐसे ही तीसरी नरक से आने वाला या उसमें जाने वाला दो रज्जु का, चौथी नरक वाला तीन रज्जु का, पाँचवी नरक वाला चार रज्जु का, छठी नरक वाला पाँच रज्जु का तथा सावती नरक वाला छ: रज्जु परिमाण क्षेत्र का स्पर्श करता है। देवगति में स्पर्शना ईसाणंता मिच्छा सासण नव मिस्स अविरया अट्ठ । अट्ठ सहस्सारंतिय छऽच्चुयाऽसंखभागुप्पि ।। १९७।। गाथार्थ-- भवनपति से लेकर ईशान देवलोक तक के देव जो मिथ्यादृष्टि तथा सास्वादन गुणस्थानवर्ती होते हैं वे नवरज्जु की स्पर्शना करते हैं। मिश्रदृष्टि
SR No.090232
Book TitleJivsamas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1998
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size5 MB
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