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१. सम्यग्दृष्टि
२. श्रावक
३. विरस
४. अनन्तवियोजक
६. ( चारित्रमोह)
उपशमक
७. उपशान्त चारित्रमोह
८. चारित्रमोह क्षपक
५. दर्शनमोह क्षपक दंसणमोह
९.
क्षीणमोह
१०. जिन
सम्मा-मिच्छाइको (मिस्सगं)
भूमिका
सम्माइट्ठी ( सम्यक्- अविरय सम्मादिडी
दृष्टि) अविरदीए
| सास्वादन सम्यकदृष्टि (सासायण-सम्मदिनी)
(दर्शनमोह क्षपक)
सम्मा-मिच्छादिट्ठी (सम्यकृमिथ्यादृष्टि)
खवगेनिअट्टिबायरे
विरदाविरद्ध विरत विरयाविरए (विरत देशविरत
अविरत ) देसविरधी अविरत )
(सागार)संजमासंजम
विरद (संजम)
पमत्तसंजए
दंसणमोह उवसागमे अपमत्तसंजय
(दर्शनमोह उपशामक)
चरितमोहस्स उपसा अनि अट्टिबायरे
मगे (उवसामण्णा)
सुडुमरागो
सुहुम- संपराए
उवसंत कसाय खडगे उवसंत मोहे
खीणमोह (छदुमत्थो खीणमोरे वेदगो
है कि चूर्णि में 'सजोगिजिणो' शब्द है, मूल
में नहीं है।
| जिण केवली सव्वण्डू सजोगी केवली सव्यदरिसी (ज्ञातव्य
सास्वादन
सम्य मिथ्यादृष्टि (मिश्र दृष्टि)
सम्यग्दृष्टि
प्रमत्तसंयत
अप्रमत्तसंयत
अपूर्वकरण
अनिवृत्तिकरण
सूक्ष्म- सम्पाराय
उपशान्त- मोह
क्षीणमोह
ix
सयोगी केवली