________________
viji
अप्रमतसंयत अपूर्व अप्रमत्तसंयत, अपूर्व उल्लेख हैं करण (निवृत्तिबादर) करण (निवृत्तिबादर) अनिवृत्तिकरण (अ अनिवृत्तिकरण (अनिवृत्तिबादर) जैसे निवृत्तिबादर) जैसे नामों का अभाव। नामों का अभाव है।
उपशम और क्षय का विचार है, किन्तु ८वें गुणस्थान से उपशम और क्षायिक श्रेणी से अलग-अलग आरोहण होता है ! ऐसा विचार नहीं है।
पतन की अवस्था का कोई चित्रण नहीं है।
तस्यार्थसूत्र (तीसरी चौथी शती)
जीवसमास
मिथ्यात्व
(इस सन्दर्भ में इसे परिगणित नहीं किया,
उपशम और क्षपक अलग-अलग श्रेणी का विचार है, किन्तु विचार उपस्थित | ८वें गुणस्थान से उपशम श्रेणी और क्षपक श्रेणी से अलग अलग आरोहण होता है। ऐसा विचार नहीं है।
पतन की अवस्था का कोई चित्रण नहीं है।
जीवस्थान, मार्गणा जीवस्थान मार्गणाः समाधां धूप स्थान और गुणस्थान स्थान और गुणस्थान में जीवस्थान और है। के सह-सम्बन्ध की के सह-सम्बन्धों की चर्चा का अभाव है। कोई खर्चा नहीं है।
गुणस्थान दोनों को जीवस्थान ही कहा गया है। इसमें इनके सह-सम्बन्ध की कोई चर्चा नहीं है. किन्तु जीवसमास एवं षट्
कसायपाहूक (४थी गली उत्तरार्ध)
मिच्छादिट्टि (मिध्यादृष्टि)
सारिणी संख्या : २
पलन आदि का मूल इन व्याख्या ग्रन्थों में पाठ में चित्रण नहीं पतन आदि का है | चित्रण है।
खण्डागम मूल में इनके सह-सम्बन्धों की चर्चा है।
उल्लेख है
समवायांग/
षट्याण्डागम
(लगभग ५वीं शती)
अलग-अलग श्रेणीविचार उपस्थित |
मिच्छाविट्ठ ( मिथ्यादृष्टि)
सहज बन्धकी चर्चा
तत्वार्थ की टीकाएँ (लगभग छठी शती)
मिथ्यादृष्टि