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जीवसमास
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सनत्कुमार तथा माहेन्द्र देवलोक का उत्कृष्ट देहमान छ: हाथ, ब्रह्मलोक तथा लान्तक का पाँच हाथ, महाशुक्र तथा सहस्वार का चार हाथ, आनत प्राणत, आरण, अच्युत का तीन हाथ, मैवेयकों मेंसबसे ऊपर के विभाग में दो तथा अनुत्तर विमानों के सबसे ऊपर सर्वार्थसिद्ध विमान में एक हाथ परिमाण जानना।
उत्तर वैक्रिय शरीर तो अच्युत देवलोक तक उत्कृष्ट से एक लाख योजन जानना । मैवेयक तथा अनुत्तर विमानवासी उत्तर वैक्रिय लब्धि होने पर भी वे उत्तर वैक्रिय शरीर नहीं बनाते । जघन्य से तो सभी का अंगुल का असंख्यातवाँ भाग
जानना ।
चतुर्विध देवनिकायों की शरीर अवगाहना
क्रम देवतानाम
भवनपति
व्यन्तर
ज्योतिष्क
सौधर्म ईशान
१.
२.
३.
४.
५.
६.
७.
८.
.
१०.
११. अनुत्तर
सनत्कुमार माहेन्द्र
ब्रह्मलोक लान्तक
महाशुक्र- सहखार
आनत प्राणत
आरण-अच्युत ग्रैवेयक
२. गुणस्थान क्षेत्र द्वार
-
भवधारणयी
(उत्कृष्ट)
सात हाथ
सात हाथ
सात हाथ
सात हाथ
छः हाथ
पाँच हाथ
चार हाथ
तीन हाथ
तीन हाथ
दो हाथ
एक हाथ
उत्तर वैक्रिय से उत्कृष्ट एवं जघन्य देहमान
ग्रैवेयक तथा अनुत्तर विमानवासी उत्तर वैक्रिय शरीर नहीं बनाते। अतः
उन्हें छोड़कर सभी का उत्तर वैक्रिय देहमान एक लाख योजन हो सकता है। इसी प्रकार सभी का जघन्य देहमान अंगुल का असंख्यातवां भाग जितना हो सकता है 1
मिच्छा य सव्वलोए असंखभागे य सेसबा हुंति ।
केवलि असंखभागे भागे व सव्वलोए वा ।। १७८ ।।
गाथार्थ - मिध्यादृष्टि सर्वलोक में है। शेष गुणस्थानवर्ती जीव लोक के असंख्यातवें भाग में होते हैं । केवली असंख्यातवें भाग में तथा समुद्घात की
अपेक्षा सर्वलोक में होते हैं।
विवेचन – सूक्ष्म एकेन्द्रिय सम्पूर्ण लोक में व्याप्त होने के कारण कहा गया है कि मिध्यादृष्टि सर्वलोक में हैं। शेष गुणस्थानवतीं जीव अर्थात् सयोगी केवली