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________________ परिमाण. द्वार कथित सात रज्जू लम्बी ऊर्ध्वगामी प्रदेशपंक्ति श्रेणी तथा तिर्यक् विस्तार वाली सूची होती है। इन दोनों का परिमाण श्रेणी-सूची-परिमाण होता है। यह श्रेणी-सूचीपरिमाण किसका होता है? इसके उत्तर में कहा है कि वह श्रेणी-सूची-परिमाण धम्मा (रत्नप्रभा) के नारकी जीवों तथा भवनपति एवं सौधर्म देवलोक के देवों का होता है। पुन: इसके परिमाण को बताते हुए कहते हैं कि समानान्तर वर्गमूल से गुणा करके, उसको प्रत्येक के साथ जोड़ना उससे प्राप्त राशि को अंगुल के पहले वर्गमूल रूप संख्या का समानान्तर (उसी) वर्गमूल के साथ गुणा करने से भवनपत्ति की श्रेणी-विस्तार सूची प्राप्त होती हैं। इस प्रथम वर्गमूल को दूसरे वर्गमूल रूप समानान्तर वर्गमूल के साथ गुणा करने से रत्नप्रभा नारकों की श्रेणी-विस्तार रूप सूची प्राप्त होती है। इस द्वितीय वर्गमूल को भी तीसरे वर्गमूल रूप समान्तर वर्गमूल के साथ गुणा करने से सौधर्म देव की श्रेणी-विस्तार रूप सूची प्राप्त होती है। भवनपति देव का परिमाण विशेष रूप से समझाने के लिए बताते हैं कि प्रतर का जो अंगुल परिमाण क्षेत्र है वह वास्तव में तो असंख्यात श्रेणी रूप है परन्तु समझाने के लिए हम दो सौ छप्पन (२५६) की संख्या की कल्पना करते हैं। इस संख्या का प्रथम वर्गमूल सोलह, दूसरा वर्गमूल चार तथा तीसरा वर्गमूल दो होता है। इस प्रकार की कल्पित दो सौ छप्पन संख्या को प्रथम वर्गमूल अर्थात् सोलह से गणा करना, जिससे चार हजार छियानवे (४०९६) श्रेणी के विस्तार रूप भवनपतियों की विष्कम्भ सूची है। इतनी प्रतर श्रेणियों में जितने आत्म-प्रदेश होते हैं उतने भवनपति देव होते हैं। घन्मानारकी के नारकों का परिमाण पहले वर्गमूल अर्थात् सोलह संख्या को दूसरे वर्गमूल (चार) के साथ गुणा करने पर (१६x४६४) यह दूसरा वर्गमूल रत्नप्रभा (घम्मा) नारकों की विष्कम्भ सूची होती है। यह भी वास्तविक रूप में तो असंख्य है। कल्पित कल्पना से चौसठ है। इन चौसठ प्रतर श्रेणियों में जितने आत्म-प्रदेश होते हैं उतने धम्मा नारकी के नारक होते है। सौधर्म देव का परिमाण दूसरा वर्गमूल चार है तथा तीसरा वर्गमूल दो है, इन दोनों को गुणा करने पर आठ श्रेणी रूप संख्या सौधर्म देवों की विष्कंभ सूची होती है। यह भी वास्तव में तो असंख्यात है पर कल्पना से आठ बतायी गयी है। काल्पनिक इन आठ
SR No.090232
Book TitleJivsamas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1998
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size5 MB
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