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जीवसमास गाथार्थ- उपशामक श्रेणी में प्रवेश करते समय कम से कम एक और अधिकतम चौपन (५४) जीव 'भजना अर्थात् विकल्प से हो सकते हैं। सम्पूर्ण उपशम काल की अपेक्षा उपशामक तथा उपशान्त मोही जीवों की संख्या संख्यात ही होती हैं।
वस्तुत: यह चर्चा गुणस्थान सिद्धान्त की अपेक्षा से न होकर तत्त्वार्थसूत्र एवं आचारांगनियुक्ति में वर्णित कर्मनिर्जरा की दस अवस्थाओं की अपेक्षा से है (सम्पादक)।
विवेचन- १. उपशामक-जिस अवस्था में मोहनीयकर्म की शेष कर्मप्रकृतियों का उपशम किया जा रहा हो।
२. उपशान्तमोह-जिसमें मोहनीय-कर्म को कर्म प्रकृतियों का उपशम पूर्ण हो चुका हो।
३. क्षपक- जिसमें मोह की शेष प्रकृतियों का क्षय किया जा रहा हो।
४. क्षीणमोह- जिसमें मोह-कर्म की सभी कर्म-प्रवृत्तियों का क्षय हो चुका हो।
उपशामक श्रेणी में १ से लेकर ५४ जीव तक ही एक साथ एक समय में प्रवेश कर सकते हैं इससे अधिक नहीं।
गाथा में "अद्ध" शब्द से उपशम श्रेणी का, प्रारम्भ से लेकर अन्त तक का समय (काल) जानना चाहिए। यह काल असंख्यात समय रूप अन्तर्मुहूर्त परिमाण का होता है। उपशम श्रेणी अन्तर्मुहूर्त से अधिक समय की नहीं होती है। अतः उपशम श्रेणी का काल (उपशामक तथा उपशान्त) दोनों मिलकर अधिकतम संख्यात समय परिमाण होता है।
अन्तर्मुहर्त के काल परिमाण वाली उपशम श्रेणी के एक समय में एक साथ १ से लेकर ५४ तक उपशामक जीव होते हैं। इस प्रकार उपशम श्रेणी के सम्पूर्ण काल में कभी-कभी उत्कृष्ट रूप से संख्यात उपशामक और संख्यात उपशान्त मोही जीव हो सकते हैं। उसके बाद उपशम श्रेणी की निरन्तरता समाप्त हो जाती है।
प्रश्न- श्रेणी का काल असंख्यात समयवाला है। उसमें यदि प्रत्येक समय में एक-एक उपशामक भी हो तो उपशामकों की संख्या सहज ही असंख्यात हो जाती है फिर संख्यात ही क्यों कहा गया ?
उत्तर-- समयों की संख्या असंख्यात होने पर भी उस श्रेणी में प्रवेश करने वाले जीवों की संख्या तो संख्यात ही होती है, क्योंकि संझी मनुष्यों की उत्कृष्ट संख्या भी संख्यात ही होती है असंख्यात नहीं। उसमें भी यह श्रेणी चारित्र सम्पन्न