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परिमाण-द्वार नैगम नय के दो भेद हैं, क्योंकि कोई भी कथन दो ही प्रकार से हो सकता है (१) सामान्य की अपेक्षा से तथा (२) विशेष की अपेक्षा से।
सामान्य की अपेक्षा लेकर प्रवृत्त होने वाले नय को समग्र ग्राही नैगम नय कहते हैं जैसे घट। यहां घट (घड़ा) शब्द सामान्य है।
विशेष का आश्रय लेकर प्रवृत्त होने वाले नय को देशमाही नेगम नय कहते हैं यथा मिट्टी का घड़ा, पीतल का घड़ा, घी का घड़ा, पानी का घड़ा आदि।
अन्य अपेक्षा से नैगम नय के तीन भेद भी माने गये है जैसे भूत ग्राही नैगम, भात्री ग्राही नैगम, और वर्तमान ग्राही मैंगम।।
___ अतीत की अपेक्षा से वर्तमान में कोई कथन करना भूत ग्राही नैगम नय है, जैसे दीपावली के दिन यह कहना कि आज महावीर स्वामी मोक्ष गये। आज का अर्थ है वर्तमान आज का दिन नहीं है अपितु भूतकाल का यही दिन है क्योकि भगवान् महावीर को मोक्ष गये ढाई हजार वर्ष से अधिक हो गये। वर्तमान में भविष्य का संकल्प करना भावी ग्राही नैगम नय है। जैसे अरिहन्त सिद्ध ही हैं।
वर्तमान में कोई कार्य शुरु कर दिया गया हो परन्तु वह पूर्ण न हुआ हो, फिर भी पूर्ण हुआ कहना वर्तमान ग्राही नैगम नय हैं, जैसे रसोई बनाना प्रारम्भ करने पर यह कहना कि आज तो भात बनाया है।
(२) संग्रह नय-द्रव्य या वस्तु के विशेष से रहित मात्र सामान्य पक्ष को ग्रहण करने वाले नय को संग्रह नय कहते हैं। (रत्नाकरावतारिका) जाति रूप सामान्य पक्ष को विषय करने वाले नय को संग्रह नय कहते हैं। जैसे यह मनुष्य है, (अनुयोग द्वार- लक्षणद्वार)
संग्रह नय एक शब्द के द्वारा अनेक पदार्थों को ग्रहण करता है अथवा मात्र अवयव या अंश के आधार पर सर्वगुण पर्याय सहित वस्तु को ग्रहण करने वाला संग्रह नय है। जैसे कोई सेठ अपने नौकर से कहता है कि दातुन लाओ, वह दातुन शब्द सुनकर मञ्जन, ब्रश, जीभी, पानी का लोटा, तौलिया आदि सब चीज लेकर उपस्थित होता है। यहाँ केवल "दातून" कहने से ही उसको दातुन की सम्पूर्ण सामग्री का ग्रहण कर दिया। संग्रह नय के दो भेद हैं- (१) परसंग्रह (सामान्य संग्रह) (२) अपर संग्रह (विशेष संग्रह)।
मात्र सत् को ग्रहण करने वाला नय परसंग्रह नय कहलाता है क्योंकि यह नय सत् कहने से जीव और अजीव के भेद को भी न मानकर सब द्रव्यों का ग्रहण करता है।
जीव द्रव्य आदि अवान्तर सामान्य को ग्रहण करने वाला और उनके भेदों की उपेक्षा करने वाला अपर संग्रह नय है। जैसे जीव कहने से सब जीव द्रव्यों