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जीवसमास गाथार्थ- इन पल्यापम की इस समयावधि को दस कोटा कोटो (दस करोड़ दसकरोड़) से गणा करने पर एक सागरोपम का परिमाण बनता है।
विवेवन- बादर उद्धारपल्योपम के कारत को तथा सूक्ष्म उद्धारपल्योपम के काल को दस कोटा-कोटी से गुणा करने से जो काल बनता है उसे क्रमशः बादर उद्धारसागरोपम तथा मृथ्म उद्धारसागरोपम कहते है। उस पल्य (कूप) को परिमाण सागर के समान अतिविस्तृत होने को कारण उसे सागरोपम कहा जाता है। सूक्ष्म उद्धार सागरोपम की उपयोगिता
जावड़ओ उद्धारो अवाज्जाण सागराण भवे। तावड़या खलु लोए हवंति दीवा समुहा य।। ९२४।।
गाथार्श्व- ढाई उद्धारसागरोपम में 'समय' की जितनी संग्ळ्या होती हैं, उत्तने ही लोक में द्वीप एवं समुद्र होते है।
विवेचन-उपरोक्त माथा में जो सागरोपम के समय का परिमाण बताया गया है, उससे भी ढाई गुणा अधिक तिर्यक् लोक के द्वीप-समुद्रों की संख्या है। इस प्रकार सूक्ष्म उद्धारसागरोपम से लोक के द्वीपों एवं समुद्रों की संख्या की परिगणना भी की जाती है। यह उद्धार पल्योपप और उद्धार सागरोपम की चर्चा पूर्ण हुई आगे अद्धा अर्थात् काल पल्यापम और सागरोपम की चर्चा करेंगे। बादर अशा पल्योपम
वाससए वाससए एक्केक्के वायरे अपहियाम्यि।
वायरअशापल्ले संखेमा वासकोडीओ ।। १२५।। गाथार्थ-सौ-सौ वर्ष की अवधि में एक-एक बाल निकालने में जो समय लगे उसे बादर (स्थूल) अद्धा (काल) पल्योपम कहते हैं। यह (बादर अद्धापल्योपम) संख्यात क्रोड वर्षों का ही होता है। सूक्ष्म अच्छा पल्योपम
वाससए वाससए एक्कक्के अवाहयम्मि सुहमम्मि ।
सहमे अखापल्ले हवंति वासा असंखेग्णा ।।१२६।।
गाथार्थ- सौ-सौ वर्ष में एक-एक सूक्ष्म बालान के खण्डों को निकालने में जो अवधि लगती है उसे सूक्ष्म अद्धा (काल) पल्योपम कहते हैं। यह (सूक्ष्म अद्धापल्योपम)) असंख्यात क्रोड़ वर्षों का होता है।