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जीवसमास हैं। उत्सेधांगुल की आय इकाई परमाणु है। परमाणु, बसरेणु आदि उत्सेधांगुल नहीं है, परन्तु इनसे निष्पन्न होने वाला अंगुल उत्सेधांगुल है। अगली गाथा में उत्सेधांगुल के स्वरूप की चर्चा की गई है। उस्लेघांगुल का स्वरूप
सत्येण सुसिक्खणवि छेत्तुं भेत्तुं च जं किर न सका।
से परमाणु सिक्षा वयात आi पमाणाणं ।।१४।।
गाथार्थ-सतीक्षण शस्त्र से भी जिसका छेदन-भेदन न किया जा सके उस परमाणु को सिद्धों ने उत्सेधांगुल का प्रथम प्रमाप कहा है। परमाणु के प्रकार
परमाणू सो दुविहो सहमो तह वावहारिओ बेव।
सहमो य अप्परसो ववहारनएणऽणंतओ खंदो।।१५।।
गाथार्थ- परमाणु दो प्रकार के होते हैं- सूक्ष्म तथा व्यावहारिक। सूक्ष्म परमाणु अप्रदेशो होता है, जबकि व्यावहारिक परमाणु अनन्त प्रदेश वाला स्कन्ध रूप होता है।(विज्ञान का परमाणु जैनदृष्टि से व्यवहार परमाणु है। क्योकि इसका विखण्डन सम्भव है, यह अनन्त प्रदेश वाला है। किन्तु जैनआगमों में उस व्यवहार परमाणु को भी अछेद्य और अभेद्य कहा गया है।)
विवेचन-अनुयोगद्वार सूत्र ३४३ में पदार्थ की व्याख्या की गई है। उसमें पदार्थ के ६ भेद बताये हैं १. स्थूल-स्थूल (ठोस पदार्थ) २. स्थूल (तरल पदार्थ) ३. स्थूल-सूक्ष्म (दृश्यमान प्रकाश आदि) ४. सूक्ष्म-स्थूल (मात्र अनुभूतिगम्य वायु या वाष्प आदि)। ५. सूक्ष्म (कार्मण वर्गणा आदि) ६. सूक्ष्म-सूक्ष्म (अन्तिम, निरंश पुद्गल परमाणु) । व्यवहार परमाणु की परिभाषा
परमाणू य अणता सहिया उस्साहसणिहया एक्का । साउणंतगुणा संती ससहिया सोऽणु बबहारी।।९।। गाथार्थ-अनन्त परमाणुओं के एकत्रित होने पर एक उत्श्लक्षण-श्लक्षिणका का होती है। उन अनन्त उत्श्लक्षण श्लक्षिणकाओं के मिलने पर एक श्लक्ष्ण-श्लक्षिणका होती है। उसे ही व्यवहारिक परमाणु कहा जाता है।
प्रश्न- क्या यह व्यवहार परमाणु छेदा-भेदा जा सकता है। उत्तर- यह व्यवहार परमाणु भी छेदा भेदा नहीं जा सकता, क्योंकि यह