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परिमाण-द्वार
२. क्षेत्र परिमाण खेत्तपमाणं दुविहं विभाग ओगाहणाए निष्फनं। एगपएसोगावाड़ होइ ओगाहणमणेगं।। ९१।।
भावार्थ- क्षेत्र प्रमाप दो प्रकार का है १. विभाग निष्पन्न तथा ३. प्रदेशावगाहन निष्पन्न। एक प्रदेशावगाह, दो प्रदेश अवगाह आदि अनेक प्रकार के अवगाहन से क्षेत्र प्रमाप होता है।
विवेचन-विभाग तथा अवगाहन में अवगाहन का विषय संक्षिप्त होने से उसका वर्णन पहले किया जाता है।
(१) प्रदेशावगाहन निष्पन्न-अनुयोगद्वार, सूत्र ३३१ में यह प्रश्न किया गया है
हे भगवन् प्रदेश निष्पन्न क्षेत्र प्रमाप का क्या स्वरूप है? हे आयुष्मन्! एक प्रदेशावगाह, दो प्रदेशावगाह यावत् संख्यात प्रदेशावगाह, असंख्यात प्रदेशावगाह क्षेत्ररूप प्रमाप को प्रदेशअवगाहन निष्पन्न क्षेत्र प्रमाप कहते हैं। (२) विभाग निष्पन्न प्रमाप
अंगुल विहस्थि रथणी कुच्छी घणु गाउयं च सेठी य। पयरं लोगमलोगो खेतपमाणस पविभागा ।।१२।। तिविहं च अंगुलं पुण उस्सोहगुल पमाण आयं च।
एक्कक्कं पुण तिविहं सूई पयरंगुल घणं च ।। ९३।।
गाथार्थ- अंगुल, वितस्ति, हाथ, कुक्षी, धनुष, गाउ, श्रेणी, प्रवर लोक, अलोक- ये सभी विभाग निष्पन्न क्षेत्र प्रमाप के विभाग होते हैं।।९२।।।
उत्सेधांगुल, प्रमाणांगुल तथा आत्मांगुल यह अंगुल के तीन प्रमाप हैं। फिर प्रत्येक के तीन-तीन भेद करना- सूच्यंगुल , प्रतरांगुल तथा घनांगुल। : विवेचन-विभाग निष्पन्न परिमाप की आद्य इकाई अंगुल है, इसके तीन • प्रकार हैं
(२) उत्सेबांगल-उत्सेध अर्थात् बढ़ना। जो अनन्त सूक्ष्म परमाण त्रसरेण, रथरेणु, इत्यादि के क्रम से बढ़ता है अथवा जो नरकादि चतुर्गति के जीवों के शरीर की ऊंचाई का निर्धारण करने के लिए उपयोगी बनता है, वह उत्सेधांगल