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________________ ६८ जीवसमास __ असंख्यास पर्व को आधु पाले मनुष्य को आपरामक तथा साधोपशमिक सम्यक्त्व वैमानिक देवों के समान ही जानना चाहिये। क्षायोपशर्मिक सम्यग्दर्शन वाला मनुष्य या तिर्यश्च मरकर वैमानिक देवों में उत्पन्न हो सकता है परन्तु जिन जीवों ने क्षायोपशमिक सम्यक्त्व प्राप्त करने से पूर्व मिथ्यात्न अवस्था में ही आयु का बन्ध कर लिया हो तो ऐसे जीव यदि असंख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्य बनें तो वे मरते समय सम्यक्त्व का वमन करके ही उत्पन्न होते हैं। इन जीवों को क्षायोपशर्मिक सम्यक्त्व नहीं होता है, यह कर्मग्रन्थकारों का मत है। जबकि आगमिक मत यह है कि बद्धायुष वाले क्षायोपशमिक सम्यक्त्वी जीव इनमें उत्पत्र होते हैं। इन जीवों को पारभविक क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन होता है। क्षायिक सम्यग्दर्शन तो वैमानिक देवों के समान ही जानना चाहिये। नरक में तीनों सम्यग्दर्शन रत्नप्रभा नारकी के जीवो को औपशमिक और क्षायिक सम्यग्दर्शन वैमानिक देवों की तरह होता है और क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन असंख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्यों की तरह जानना चाहिये। असंख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यञ्चों का सम्यग्दर्शन असंख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यञ्चों में तीनों ही प्रकार के सम्यक्त्व असंख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्यों की तरह जानना चाहिये। प्रश्न-क्षायिक सम्यग्दर्शन से युक्त बासुदेव आदि की उत्पत्ति तीसरी नरक तक बताई गई है किन्तु यहाँ तो शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा में क्षायिक सम्यक्त्व का निषेध किया गया है ऐसा क्यों है? । उत्तर- यह प्रश्न उचित है, किन्तु क्षायिक सम्यक्त्व के धारक जीव अधिकांशतया तो प्रथम नरक तक ही जा सकते हैं उसके आगे तो पूर्व में आयुष्य का बंध कर लेने वाले क्वचित् जीव ही जाते हैं अत: सामान्य की अपेक्षा से ऐसा कहा गया होगा, विशेष तत्व तो केवलीगम्य है। एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय तथा असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों को तो तभविक या पारमविक किसी भी अपेक्षा से तीनों में से कोई भी सम्यग्दर्शन नहीं होता है, वे सदैव ही मिथ्यादृष्टि होते हैं। अब आगे "अन्तरकरण” का स्पष्टीकरण किया जाता हैअन्तरकरण जिस प्रकार वेग से प्रवाहित होने वाली सरिता की धारा में पर्वत से गिरा कोई पत्थर लुढ़कते-लुढ़कते गोल, चिकना एवं चमकदार हो जाता है उसी प्रकार
SR No.090232
Book TitleJivsamas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1998
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size5 MB
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