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________________ सत्पदप्ररूपणाद्वार अवधिज्ञान के भी दो भेद है १. भवप्रत्यय-- जन्म से पाया जाने वाला अवधिज्ञान भवप्रत्यय कहलाता है। यह देवों तथा नारकी को होता है। २. गुणप्रत्यय-आत्मनिर्मलता, तप आदि से जिस अवधिज्ञान की प्राप्ति होती है उसे गुणप्रत्यय कहा जाता है। यह मनुष्यों तथा तिर्यचों को होता है। अणुगामि अवद्रियहीयमाणमिड तं भवे सपडिवरखं । उज्जुमई विउलमई मणनाणे केवलं एक्कं ।।६४।। गाथा - अनुगामी, अवस्थित प्रसिपा), होपमाः, तथा इन तीनों के प्रतिपक्षी अर्थात् विपरीत-अननुगामी, अनवस्थित (प्रतिपाती) तथा वर्धमान ये छ: प्रकार के अवधिज्ञान है। ऋजुमति तथा विपुलमति ये मनःपर्यवज्ञान के दो भेद हैं। केवलज्ञान अकेला होता है उसका कोई भेद नहीं है। विवेचन- अवधिज्ञान के छह भेद हैं - १. अनुगामी अवधिज्ञान-- जो एक क्षेत्र को छोड़कर दूसरे क्षेत्र में जाने पर भी सदैव साथ रहे उसे अनुगामी अवधिज्ञान कहते हैं। २. अननुगामी अवधिज्ञान-- जो क्षेत्रान्तर होने पर साथ न जाये वह अननुगामो अवधिज्ञान है। ३. अवस्थित (अप्रतिपाती) अवधिज्ञान-जो उत्पन्न होने के बाद जीवन पर्यन्त जाता नहीं है, वह अवस्थित अवधिज्ञान है। ऐसा अवधिज्ञान देव तथा नारकी में होता है। मनुष्यों को भी अप्रतिपाती अवधिज्ञान हो सकता है। ४. अनवस्थित (प्रतिपाती) अवधिज्ञान-जो अवधिज्ञान उत्पन्न होने के पश्चात् चला जाता है, वह अनवस्थित अवधिज्ञान है। यह मनुष्यों एवं तिर्यचों में पाया जाता है। ५. हीयमान अवधिज्ञान-जो पूर्णिमा के चन्द्रमा के समान निरन्तर घटने वाला हो वह हीयमान अवधिज्ञान है। ६. वर्षमान अवधिज्ञान-- जो प्रतिपदा के चन्द्रमा के समान निरन्तर बढ़ने ' वाला हो वह अवधिज्ञान वर्धमान कहलाता है। मन:पर्ययज्ञान के दो भेद हैं १. ऋजुमति मनःपर्ययज्ञान-जो मन के स्थूल क्रमबद्ध पर्यायों को और उनके विषय को सामान्य रूप से जानता है वह ऋजुमति मन:पर्ययशान है।
SR No.090232
Book TitleJivsamas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1998
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size5 MB
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