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________________ * जिनसहस्रनाम टीका - ८२ * संध्या, शौर्य, भीम, इन्द्रिय, रूप, प्रधान, दोष आदि में गुण शब्द का प्रयोग होता है। गुणोच्छेदी = गुणानामिन्द्रियाणामुच्छेदोऽस्यास्तीति गुणच्छेदी इत्यर्थः, अथवा गुणान् क्रोधादीन् उच्छेदयतीत्येवंशीलो गुणोच्छेदी । गुण शब्द का वाच्य इन्द्रिय भी है। इन्द्रियों का उच्छेद प्रभु ने किया है और अपने शुद्ध स्वरूप को वे प्राप्त हुए हैं। अत: गुणोच्छेदी हैं । क्रोधादिको भी गुण कहते हैं अर्थात् क्रोधादि को जिनदेव ने उच्छेद किया है इसलिए वे गुणोच्छेदी हैं। वा सत्त्व, रज, तम, काम-क्रोधादि वैभाविक गुणों के नष्ट करने वाले होने से आप गुणोच्छेदी हैं। निर्गुण: = निश्चिता: केवलज्ञानादयो गुणा यस्य स निर्गुणः अथवा निर्गता गुणा रागद्वेष मोह क्रोधादयोऽशुद्धगुमा यस्मादति नग:, अथवा नि-सा समुदिता गुणास्तंतवो वस्त्राणि यस्मादिति निर्गुणो दिगम्बर इत्यर्थः, अथवा निर्नीचैः स्थितान् पादपद्मसेवातत्परान् भव्यजीवान् गुणयतीति आत्मसमानगुणयुक्तान् करोतीति निर्गुणः = निश्चित है केवलज्ञानादिक गुण जिनके ऐसे जिनदेव निर्गुण हैं। अथवा राग, द्वेष, मोह, क्रोधादिक अशुद्ध गुण जिनसे निकल गये हैं ऐसे जिनेश्वर निर्गुण हैं। अथवा निकल गये हैं समुदित गुण तन्तुओं से बने हुए वस्त्रादिक जिनके ऐसे जिनेश्वर निर्गुण हैं। अर्थात् वस्त्र रहित दिगम्बर हैं। अथवा 'निर्नीचैः स्थितान्' निम्न अपने से नीची अवस्था वाले तथा अपने पादपद्मों की सेवा करने में तत्पर ऐसे भव्य जीवों को जिनप्रभु 'गुणयति' अपने समान गुणयुक्त करते हैं इसलिए करण हैं और वे निर्गुण हैं। वा काम क्रोधादि वैभाविक गुणों से रहित होने से भी आप निर्गुण हैं। पुण्यगी: पुण्या पवित्रा गीर्वाणी यस्य स पुण्यगी; = पुण्य पवित्र वाणी जिनकी है ऐसे जिनेश्वर पुण्यगी हैं। गुणः = गुण्यते इति गुणः अथवा गुण एव गुणः प्रधान इत्यर्थः ‘गुण्यते' इति गुण: जिनमें गुण बढ़ गये हैं ऐसे जिनेश्वर गुण शब्द से वाच्य होते हैं। अथवा जो गुण हैं प्रधान हैं, गणधरादिकों से श्रेष्ठ हैं उन्हें गुण कहते हैं। वा गुणों की राशि होने से गुण हैं। शरण्यः = शृणाति भयमनेनेतिशरणं, ‘करणाधिकरणयोश्च युट्' शरणाय
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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