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________________ ** जिनसहमनाम टीका - ७९ * पद्मनाभिः = पद्म नाभौ यस्य स पद्यनाभिः = जिसके नाभि में कमल है या प्रभु की नाभि कमलाकार होती है। अनुत्तरः = न विद्यते उत्तर: श्रेष्ठो यस्मात् स अनुत्तरः = जिनेन्द्र से अधिक श्रेष्ठ जगत् में कोई भी व्यक्ति नहीं है। अतः वे अनुत्तर हैं। पायोनिः = पद्मायाः लक्ष्म्या: योनिरुत्पत्तिर्यस्मात्स पायोनिः = पद्मा की, लक्ष्मी की उत्पत्ति जिनसे होती है वे जिनराज पद्मयोनि हैं। जगद्योनिः = जगतां योनि: उत्पत्तिः जगद्योनि: जगदुत्पत्तिकारणमित्यर्थः = जगत् की उत्पत्ति जिनेश्वर से हुई अत: जिनेश जगद्योनि हैं। जगत् को असि, मषि, कृषि आदि जीवन निर्वाह के उपाय बताकर जगत् का रक्षण किया अतः वे जगद्योनि हैं, जगदुत्पत्ति के कारण हैं। इत्यः = इण्गतौ ईयते गम्यते ज्ञानेनेति इत्यः। 'वृ ञ दृ जुषीणू शासु मुगुहां क्यप' इण् धातु का अर्थ गमन करना ऐसा है। भगवज्जिनेश्वर के पास हम ज्ञान से जा सकते हैं, उनका स्वरूप हम ज्ञान से जान सकते हैं, अतः वे इत्य हैं। अथवा जो स्वयं केवलज्ञान को प्राप्त हैं। स्तुत्यः = स्तोतुं योग्यः स्तुत्यः 'वृज, दृजुषीण शासुसुगुहा क्यप्' = जिनवर स्तुति के योग्य हैं, स्तुत्य हैं। ___ स्तुतीश्वरः = स्तुतेरीश्वरः स्तुतीश्वर: अथवा स्तुतौ स्तुतिकरणे ईश्वराः समर्थाः इन्द्रादयो यस्य स स्तुतीश्वरः = जिनेश्वर स्तुति के स्वामी हैं। अथवा जिनेश्वर की स्तुति करने में इन्द्रादिक समर्थ हैं, इतर नहीं हैं। स्तवनार्हः = स्तवनस्य स्तुतेरह: योग्यः स्तवनार्हः - जिनवर ही स्तुत्य हैं, स्तुतियोग्य हैं। हृषीकेशः = हृषीकाणां इन्द्रियाणां ईशो वशिता हषीकेशः विजितेन्द्रियः इत्यर्थः - हृषीक - इन्द्रियों को ईश-वश करने वाले जिनेन्द्र जितेन्द्रिय हैं। अत: हृषीकेश हैं। जितजेयः = जेतुं योग्या जेयाः कामक्रोधादयः जिता जेया: येनासो जितजेयः = भगवज्जिनेश्वर ने जीतने योग्य काम-क्रोधादिकों को जीत लिया है अतः वे जितजेय हैं।
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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