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________________ * जिनस कहते हैं, 'मृङ्' धातु प्राणत्याग अर्थ में है, नहीं है मृत्यु जिसकी वह अमृत्यु कहलाता है। अमृतात्मा = अमृतो मरणरहित आत्मा स्वरूपं यस्य स अमृतात्मा मरण रहित स्वरूप को धारण करने वाले जिनेश्वर अमृतात्मा हैं। अमृतोद्भवः = अविद्यमानं मृतं मरणं यत्र तदमृतं मोक्षः तस्य उद्भवः उत्पत्तिर्भव्यानां यस्मादसावमृतोद्भवः, अथवा मृतं मरणं उद्भवो जन्म मृतं च उद्भवश्च मृतोद्भवौ न विद्येते मृतोद्भवौ मरणजन्मनी यस्य सोऽमृतोद्भवः - जिसमें मरण नहीं है ऐसी अवस्था को अमृत कहते हैं। अर्थात् मोक्ष को अमृत कहते हैं । उस मोक्ष की उत्पत्ति भव्यों को जिससे होती है उस जिनदेव को अमृतोद्भव कहते हैं। अथवा मृत मरण तथा उद्भव - जन्म ये दोनों अवस्थायें जिसको नहीं हैं, ऐसे जिनेश्वर को अमृतोद्भव कहते हैं। ब्रह्मनिष्ठः परंब्रह्म ब्रह्मात्मा ब्रह्मसम्भवः । महाब्रह्मपतिर्ब्रह्मेट् महाब्रह्मपदेश्वर : || ९ || सुप्रसन्न: प्रसन्नात्मा ज्ञानधर्मदमप्रभुः । प्रशमात्मा प्रशान्तात्मा पुराणपुरुषोत्तमः ॥ १० ॥ अर्थ : ब्रह्मनिष्ठ, परंब्रह्म, ब्रह्मात्मा, ब्रह्मसम्भव, महाब्रह्मपति, ब्रह्मेद. महाब्रह्मपदेश्वर, सुप्रसन्न, प्रसन्नात्मा, ज्ञानधर्मदमप्रभु, प्रशमात्मा, प्रशान्तात्मा, पुराणपुरुषोत्तम ये तेरह नाम जिनेश्वर के हैं। इनका विवरण इस प्रकार हैटीका - ब्रह्मनिष्ठः = ब्रह्मणि केवलज्ञानेऽतिशयेन । ब्रह्मनिष्ठः तथा चोक्तं आत्मनि मोक्षे ज्ञाने वृत्ते ताते च भरतराजस्य । ब्रह्मेति गीः प्रगीता न चापरो विद्यते ब्रह्मा ॥ ब्रह्म में, केवलज्ञान में अतिशय निश्चल रहने वाले जिनेश्वर ब्रह्मनिष्ठ हैं । केवलज्ञान को ब्रह्म कहते हैं । ब्रह्म शब्द के अनेक अर्थ हैं जैसे आत्मा, मोक्ष, ज्ञान, चारित्र, भरतचक्रवर्ती के पिता वृषभनाथ, इतने अर्थों में ब्रह्मशब्द प्रसिद्ध है। इनसे अन्य कोई ब्रह्म नहीं है। आप सदा शुद्ध आत्मस्वरूप में लीन रहते हैं अतः ब्रह्मनिष्ठ हैं।
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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