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*जिनसहमा टीका - 12 क्षेत्रज्ञः = क्षियंति अधिवसति तदिति क्षेत्रं 'सर्वधातुभ्य:ष्ट्रन्' क्षेत्रमधो - मध्योर्चलोकलक्षणं त्रैलोक्यमलोकाकाशं च जानाति इति क्षेत्रज्ञ; नाम्युपघा: प्रीकृदृगृज्ञा क' 'आलोपोऽसार्वधातुके' । अथवा क्षेत्रं भगं, भगस्वरूपं जानातीति क्षेत्रज्ञः। उक्तं च भगस्वरूपं शुभचंद्रेण मुनिना
मैथुनाचरणे मूढ नियन्ते जंतुकोटयः।
योनिरंध्रसमुत्पन्ना लिङ्ग संघट्टपीडिताः ।। एकैकस्मिन् घातेऽसंख्येया: पंचेन्द्रियादयो जीवा म्रियते इत्यर्थः । ‘घाए घाए असंखिज्जा' इति वचनात्। अथवा क्षेत्राणि वंशपत्रकूर्मोन्नतशंखावर्तयोनीन् जानातीति क्षेत्रज्ञः, वंशपत्रयोनिः सर्वलोकोत्पत्ति सामान्या, कूर्मोन्नतयोनौ शलाकापुरुषा उत्पद्यन्ते, शंखावर्तयोनौ न कश्चिदुत्पद्यते, अथवा क्षेत्र स्त्री तत्स्वरूपं जानातीति क्षेत्रज्ञः। अथवा क्षेत्रं शरीरं शरीरप्रमाणमात्मानं जानातीति क्षेत्रज्ञः। नहि श्यामाककणमात्र, न चांगुष्टप्रमाण; न घटस्थित-चटकवदेकदेशस्थितः, न च सर्वव्यापी जीवपदार्थः, किन्तु निश्चयेन लोकप्रमाणोऽपि व्यवहारेण शरीरप्रमाण इति जानातीति क्षेत्रज्ञः = त्रैलोक्य तथा अलोकाकाशरूपी क्षेत्र को प्रभु जानते हैं अर्थात् प्रभु अनन्तज्ञानी हैं। अथवा क्षेत्र शब्द का अर्थ भग-योनि ऐसा है। भग के स्वरूप को जिनदेव जानते हैं अत: वे क्षेत्रज्ञ हैं। शुभचंद्र मुनिवर्य ने क्षेत्र का स्वरूप ऐसा कहा है
"हे मूढ पुरुष ! मैथुन करते समय लिंग के आघात से योनि में उत्पन्न हुए कोट्यवधि जन्तु मरते हैं, 'घाए घाए असंखेज्जा' लिंग के प्रत्येक आघात से असंख्यात जन्तु मरते हैं," ऐसा आगमवचन है।
योनि के वंशपत्र, कूर्मोन्नत तथा शंखावर्त ऐसे तीन भेद हैं, वंशपत्र्योनि से सर्व लोगों की उत्पत्ति होती है, कूर्मोन्नत योनि में शलाका पुरुष, २४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ९ नारायण, ९ प्रति नारायण तथा ९ बलभद्र उत्पन्न होते हैं। शंखावर्त योनि में कोई उत्पन्न नहीं होता 1 अथवा क्षेत्र-स्त्री उसके स्वरूप को जानने वाला क्षेत्रज्ञ है।
अथवा क्षेत्र = शरीर उसको जानने अर्थात् तत्प्रमाण आत्मा को जानना ऐसा क्षेत्रज्ञ शब्द का अर्थ है। यह आत्मा राई के कणतुल्यनहीं है। अथवा अंगूठे