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________________ * जिनसहस्रनाम टीका - ४६ * हिरण्यगर्भः श्रीगर्भः प्रभूतविभवोऽभवः । स्वयम्प्रभुः प्रभूतात्मा भूतनाथो जगत्प्रभुः ।।८॥ अर्थ : हिरण्यगर्भ, श्रीगर्भ, प्रभूतविभव, अभव, स्वयम्प्रभु, प्रभूतात्मा, भूतनाथ, जगत्प्रभु ये आट जिनेश्ता सा हैं। टीका - हिरण्यगर्भः = हिरण्येन सुवर्णेनोपलक्षितो गर्भो यस्य स हिरण्यगर्भः, भगवति गर्भे स्थिते नवमासान् रत्नकनकवृष्टिर्मातुर्गुहागणे भवति तेन हिरण्यगर्भः। गर्भागमनात्पूर्वमपि षण्मासान् रत्नरुपलक्षिता सुवर्णवृष्टिर्भवति तेन हिरण्यगर्भः। अथवा हि निश्चयेन रण्ये रणे साधुः गर्भो यस्य स हिरण्यगर्भः भगवत: पिता केनापि रणे जेतुं न शक्यो यस्मात् तेन भगवान् हिरण्यगर्भः - हिरण्य-सुवर्ण से उपलक्षित हुआ है गर्भ जिसका, जिनदेव जब माता के गर्भ में आये तभी से गर्भ से छह मास पूर्व १५ मास तक माता के गृहाङ्गण में रत्नसुवर्णों की वृष्टि हुई, इस कारण से प्रभु का हिरण्यगर्भ यह नाम सार्थक हुआ। अथवा निश्चय से रण्ये रण में साधु है गर्भ जिनका ऐसे प्रभु हैं। भगवान पिता रण में किसी से भी जीते नहीं गये इसलिए भगवान का हिरण्यगर्भ नाम जनप्रसिद्ध हुआ। अथवा जब आप माता के गर्भ में आये थे, उस समय पृथ्वी सुवर्णमय हो गयी थी अतः हिरण्यगर्भ हैं। प्रभूतविभव: = प्रभूतः प्रचुर: विभवस्त्रैलोक्यसाम्राज्यं यस्य स प्रभूतविभवः- प्रभु को त्रैलोक्य का साम्राज्य प्राप्त हुआ अतः वे प्रभूतविभव नाम से प्रसिद्ध हैं। वा आपका समवसरण रूप अपूर्व वैभव होने से आप 'प्रभूत विभव' हैं। अभवः = न विद्यते भवः संसारो यस्य सोऽभवः । प्रभु संसार से पुनर्जन्म से रहित थे। जिनके भव नहीं है, वे अभव कहलाते हैं। __ स्वयम्प्रभुः = स्वयमात्मना प्रभुः स न तु केनापि कृतः स्वयंप्रभुः = जिनदेव स्वयं समर्थ थे, अन्य किसी ने प्रभु को समर्थ नहीं बनाया। प्रभूतात्मा = प्रभूतः सत्तालक्षण आत्मा यस्य स प्रभूतात्मा सिद्धस्वरूप इत्यर्थः - प्रभूत सत्ता लक्षण से युक्त प्रभु का आत्मा है अत: वे प्रभु सिद्धस्वरूप
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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