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________________ * जिनसहस्रनाम टीका - ४४ अर्थ : हिरण्यनाभि, भूतात्मा भूतभृद्, भूतभावन, प्रभव, विभव, भास्वान्, भव, भाव, भवान्तक, ये जिनवर के नाम हैं। टीका - हिरण्यनाभिः = हिरण्यं सुवर्णं नाभिः यस्यासौ हिरण्यनाभिः हिरण्य सुवर्ण उसके समान प्रभु की नाभि चमकीली थी इसलिए वे हिरण्यनाभि नाम से प्रसिद्ध हुए । = " भूतात्मा = भूतः सत्यार्थः आत्मा यस्येति भूतात्मा, कोऽसौ आत्मा शब्दस्य सत्यार्थः इति चेदुच्यते । अतः सातत्यगमने इति तावद्धातुर्वर्त्तते । अतति सततं गच्छति लोकालोकस्वरूपं जानातीत्यात्मा सर्वधातुभ्यो मत् 'सर्वे गत्यर्था ' इत्यभिधानात् । सच्चे अर्थ से युक्त है आत्मा जिनका ऐसे प्रभु भूतात्मा हैं, आत्मा शब्द का सत्यार्थ कौनसा है ? उत्तर = 'अत्' धातु से आत्मा शब्द की सिद्धि होती है । अत् धातु का अर्थ सतत गमन करना है, जो गत्यर्थक धातु हैं, वे ज्ञानार्थ में भी मानी जाती हैं। अतः अतति जानाति इति आत्मा ऐसी निरुक्ति यहाँ उपयोगी हैं, अर्थात् लोकालोक स्वरूप को जो जानता है, उसे आत्मा कहना चाहिए अतः सम्पूर्ण लोक को जानने से जिनका आत्मा व्यापक है ऐसे भगवान जिनदेव भूतात्मा हैं। भूतभृद् = भूतान् प्राणिनः देवविशेषांश्च विभर्ति पालयति स भूतभृत् भूतों का याने प्राणियों का और भूत जाति के देव विशेषों का भी जो भगवान पालन करते हैं, वा सर्व जीवों के रक्षक हैं अतः भूतभृत् हैं। = भूतभावनः = भूता सत्यरूपा भावना वासना पुनश्चिन्तनं यस्य स भूतभावनः अथवा भूता सत्तारूपा दर्शनविशुद्धिर्विनय-संपन्नता, शीलव्रतेष्वनतिचारोऽभीक्ष्णज्ञानोपयोगसंवेगों, शक्तितस्त्याग-तपसी - साधुसमाधि - वैयावृत्य करण मर्हदाचार्य बहुश्रुत प्रवचनभक्तिरावश्यकापरिहाणिर्मार्ग प्रभावना - प्रवचनवत्सलत्वमिति तीर्थंकरत्वस्य । एताः षोडशभावना: यस्यासौ भूतभावनः = भूता सत्यरूप भावना पुनः पुनः चिन्तन जिनका है, ऐसे प्रभु भूतभावन हैं, अथवा दर्शन - त्रिशुद्धि आदि ऐसी तीर्थंकरत्व को प्राप्त कराने वाली सत्य भावनायें जिन्होंने भायी हैं वे जिनराज भूतभावन हैं। आपकी भावनाएँ सत्यरूप हैं। अत: आप भूतभावन हैं। -
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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