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________________ * जिनसहस्रनाम टीका - २४८ * विजय और मन, वचन एवं काय रूप तीन प्रकार के योगों का निरोध यह सतरह प्रकार का संयम कहलाता है। मूलाराधना में पृथिवी, अप, तेज, वायु, वनस्पति ये पाँच स्थावरकाय और दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय, पंच इन्द्रिय ये त्रस इनकी रक्षा करना यह ९ प्रकार का प्राणिसंयम है। तुण आदि का छेद नहीं करना अजीव संयम है, अप्रतिलेखन, दुष्प्रतिलेखन, उपेक्षा संयम, अपहत संयम, मन, वचन, काय संयम ये भी सतरह प्रकार के संयम हैं। पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, वनस्पति कायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय इन नौ प्रकार के जीवों की विराधनाजन्य नौ प्रकार का असंयम, तृण आदि को बिना प्रयोजन नखादि से छेदना अजीव असंयम, जीवों को उठाकर दूसरे स्थान पर डाल देना अपहत असंयम, जीवों को अन्यत्र डालकर फिर देखना नहीं उपेक्षा असंयम, दुष्परिणामों से प्रतिलेखन करना, पीछे से प्रतिलेखन करना, मन, वचन, काय का अनिरोध इन सतरह प्रकार के असंयम का त्याग करना १७ प्रकार का संयम है। इन सतरह प्रकार के संयम का पालन करने वालों को परमसंयम कहते हैं, उन परमसंयम को मेरा नमस्कार हो। परमदृश् (केवलज्ञान रूपी लोचन) के द्वारा देखलिया है परमार्थ (मोक्षमार्ग) को जिन्होंने उनको परमदृष्ट परमार्थ कहते हैं। ___ अथवा- मति, श्रुत, अवधि ज्ञान के द्वारा देख लिया है परमार्थ (वर्तनालक्षणकाल) को जिन्होंने उनको भी परमार्थदृष्ट कहते हैं। द्रव्यों को परिवर्तन कराने में सहायक होता है वह व्यवहार काल है। जो परिवर्तन लक्षण वर्तना लक्षण काल है वह परमार्थ काल है। उस परमार्थ काल को जानने वाले परम दृष्ट परमार्थ कहलाते हैं। उस परमार्थ दृष्ट परमार्थ के लिए नमस्कार हो। _ 'ताय' धातु संतान-पालन और रक्षण में आती है। रक्षण, पालन करना जिसके हृदय में है अथवा रक्षण-पालन करने वाले को 'तायी' कहते हैं। वीतराग
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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