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________________ * जिनसहस्रनाम टीका - २४१ . तीन वेदों के लक्षण - योनि, कोमलता, भयशील होना, मुग्धपना, पुरुषार्थशून्यता, स्तन और पुरुषभोग की इच्छा ये सात भाव स्त्रीवेद के सूचक हैं। लिंग, कठोरता, स्तब्यसा, शौण्डीरः।., दाढ़ी, मंड, उजालपा और स्त्रीभोगइच्छा ये सात भाव, पुरुषवेद के सूचक हैं। स्त्रीवेद और पुरुषवेद के सूचक १४ चिह्न मिश्रित रूपसे नपुंसक वेद के सूचक हैं। इन तीनों वेदों से रहित होने से भगवान अवेद कहलाते हैं। अथवा कालासुर आदि के द्वारा रचित ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद नामक हिंसाशास्त्ररूप जिसके नहीं है, वह अवेद कहलाता है। शंका - जो सबको जानता है वह सर्वज्ञ कहलाता है। भगवान पापशास्त्र रूप चार वेद को नहीं जानते हैं, अत: वे सर्वज्ञ कैसे हो सकते हैं ? उत्तर - सर्वज्ञ भगवान उनको हेय रूप से जानते हैं। उनका हेय रूप से निरूपण करते हैं, उपादेय रूप से नहीं अतः उनके रचयिता नहीं होने से 'अवेद' कहलाते हैं। अथवा - ‘अव' समन्तात् (चारों तरफ से) 'इ' स्वर्ग और मोक्ष लक्ष्मी को 'द' देते हैं इसलिए अवेद' हैं। अभ्युदय निश्रेयस (मोक्ष) सम्पदा के प्रदायक होने से अवेद हैं। अथवा - 'अ' शिव, ईशान, केशव, वायुदेव, ब्रह्मा, चन्द्र, सूर्य, 'व' वरुण इन देवों के 'ई' पापों का 'द' नाशक होने से भी भगवान अवेद हैं। विश्वप्रकाश कोश में 'अ' शब्द के शिव, केशव, वायु, ब्रह्मा, चन्द्रमा, अग्नि, सूर्य अर्थ किये हैं। एवं 'व' का अर्थ वरुण है। 'इ' का अर्थ कुत्सित या पाप है। 'द' का अर्थ खण्डन करना है। अत: जो इन शिवादि के पापों का नाश करता है। अथवा स्तुति, पूजा करने वालों के पापों का नाशक है उसको 'अवेद' कहते हैं। ____ वीतराग प्रभु की स्तुति करने से कोटि भवों में उपार्जन किये हुए कर्म क्षणभर में नष्ट हो जाते हैं।
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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