SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1 | * जिनसहस्रनाम टीका - २३७ सम्पदा का अहंकार ऋद्धि मद है, तपश्चरण का अहंकार तपमद है। शरीर के सौन्दर्य का मद रूपमद है। कुगुरु, कुदेव, कुशास्त्र और उनके भक्त ये छह अनायतन हैं, सम्यग्दर्शन के घातक हैं। इनकी प्रशंसा, संस्तवन करने से सम्यग्दर्शन मलिन होता है। शंका, कांक्षा, जुगुप्सा, मूढत्व, अनुपगूहनत्व, अस्थितिकरण, अवात्सल्य और अप्रभावना, ये सम्यग्दर्शन के २५ दोष हैं; इनसे रहित होना तथा सात भयों (इहलोक का भय, परलोकभय, मरणभय, वेदनाभय, अगुप्तिभय, अरक्षा भय और अकस्मात् भय) से रहित होकर जैन दर्शन ही सत्य है, ऐसा दृढ़ विश्वास करना निशंकित अंग है । इसलोक तथा परलोक सम्बन्धी भोग और उपभोग की कांक्षा (अभिलाषा) नहीं करना नि:कांक्षित अंग है। शरीरादिक पवित्र हैं ऐसे मिथ्या संकल्प का त्याग करना वा साधु जनों के शरीर को देखकर ग्लानि नहीं करना निर्जुगुप्सा अंग है। अनार्हत ( असर्वज्ञ) कथित तत्त्वों में मोहित नहीं होना अमूढदृष्टि अंग है। उत्तम क्षमादि के द्वारा आत्म-धर्म की वृद्धि करना उपबृंहण वा चतुर्विध संघ के दोषों को ढकना उपगूहन अंग है। धर्म के विध्वंस में कारणभूत क्रोध, मान, माया, लोभादिक के उत्पन्न हो जाने पर स्वयं धर्म से च्युत नहीं होना तथा किसी कारण से धर्म से च्युत होने वाले धर्मात्माओं को भी धर्म में स्थिर करना स्थितीकरण हैं। धर्म और धर्मात्मा के प्रति वा चारित्र जिनशासन के प्रति अनुराग रखना वात्सल्य अंग है। सम्यग्दर्शन, ज्ञान, और तपके द्वारा आत्मा को निर्मल करना वा दान, पूजा आदि के द्वारा जिनधर्म का द्योतन करना प्रभावना अंग है। इस प्रकार अष्ट अंग सहित और २५ दोष रहित सम्यग्दर्शन को धारण करना क्षीणदोष है, उस क्षीणदोष भगवान के लिए मेरा नमस्कार है । नमः सुगतये तुभ्यं शोभनां गतिमीयुषे । नमस्तेऽतीन्द्रियज्ञानसुखायातीन्द्रियात्मने ।। २५ ।। टीका - नमः सुगतये तुभ्यं तुभ्यं नमः कस्मै सुगतये सुष्ठु शोभना गतिः केवलज्ञानं यस्येति सुगतिः तस्मै सुगतये । पुनः शोभनां गतिमीयुषे शोभनां गतिं मोक्षगतिं ईयुषे प्राप्ताय नमः । पुनः नमस्तेऽतद्रियज्ञानसुखाय ते तुभ्यं नमः →
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy