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________________ ** जिनसहस्रनाम टीका - २३६१ क्षीणदोषी आपको नमस्कार हो। यहाँ क्षीणदोष का अर्थ है निर्मल सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होना । सम्यग्दर्शन के २५ दोष जिसके नष्ट हो गये हैं वह क्षीणदोष कहलाता है। तीन मूढ़ता, आठ मद, छह अनायतन और शंकादि आठ दोष ये सम्यग्दर्शन के पच्चीस दोष हैं। इनका विवरण इस प्रकार हैलोकमूढ़ता, देवमूढ़ता, पाखण्डमूढ़ता के भेद से मूढ़ता तीन प्रकार की सूर्य को अर्घ देना, ग्रहण में धर्म मानकर स्नान करना, संक्रान्ति के दिन धन का दान करना, सन्ध्यावन्दना, अग्निसत्कार, घर की देहली की पूजा करना, गोपुच्छ वा गाय की योनि को नमस्कार करना, गोमूत्र का सेवन करना, रत्न, वाहन, पृथ्वी, वृक्ष, शस्त्र, पर्वत आदि की पूजा करना, धर्म मानकर नदी मेंसमुद्र में स्नान करना, बालू पत्थर आदि ढेर करके पूजा करना, अग्नि से जलकर, पर्वत से गिरकर मरने में धर्म मानना लोकमूढ़ता है। अर्थात् हेयोपादेय का, तत्त्व अतत्त्व का विचार न करके लौकिक जन की देखादेखी करना लोकमूदता है। ____ जो आरंभ, परिग्रह और हिंसा कार्यों से युक्त हैं, संसार-समुद्र में भ्रमण करने वाले हैं, पाखण्डी हैं, मिथ्यादृष्टि साधु हैं उनका सत्कार-पुरस्कार करना पाखण्डमूढ़ता है। . सांसारिक भोगों की इच्छा से रागी-द्वेषी देवताओं की पूजा करना देवमूढता है। ज्ञान, पूजा, कुल, जाति, बल, ऋद्धि, तप और शरीर इन आठ का आश्रय लेकर उन्मत्त होना, अहंकारी होना मद कहलाता है। क्षायोपशमिक, विनाशीक श्रुतज्ञान को प्राप्तकर अहंकारी बनना ज्ञानमद है। पूजा, मान-सन्मान को प्राप्त कर घमण्डी बनना पूजामद है। पिताके राजा, मंत्री, धनाढ्य आदि होने पर मानी बनना कुल मद है। मामा के धनाढ्य आदि होने पर मद होना जाति मद है। शरीर की शक्ति का घमण्ड बल मद है, धन
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
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