SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 241
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * जिनसहस्रनाम टीका - २२५ * टीका - ते तुभ्यं नमः नमस्कारः। कस्मै अनन्तचक्षुषे अनन्तानि अमर्यादीभूतानि केवलज्ञानलोचनानि यस्येति स अनन्तचक्षुस्तस्मै अनंतचक्षुषे अनंतज्ञानिने इत्यर्थः। कस्मादनंतचक्षुः ? ज्ञानावरण-निर्हासात् ज्ञान केवलज्ञानं आवृणोतीति ज्ञानावरणं कर्म तस्य निर्हासात् निर्णाशात्। पुनः ते तुभ्यं नमः नमस्कारोऽस्तु । कस्मै विश्वदर्शिने विश्व दृष्टवान् विश्वदर्शी तस्मै विश्वदर्शिने। कस्मात् विश्वदर्शी दर्शनावरणच्छेदात् दर्शनमावृणोतीति दर्शनावरणं कर्म तस्योच्छेदात् विनाशात् विश्वदर्शिने सकलदर्शिने इत्यर्थः ॥१६॥ अर्थ - ज्ञानावरण कर्म का नाश हो जाने से अनन्त केवलज्ञान रूपी चक्षु को धारण करने वाले भगवन् आपको नमस्कार हो । दर्शनावरण कर्म का नाश हो जाने से विश्व के दर्शक (सर्वदर्शी) भगवन् आपको नमस्कार हो। अर्हन्त अवस्था में ज्ञानावरण कर्म का नाश होने से अनंत केवलज्ञान रूपी नेत्र के धारक सर्वज्ञ होते हैं और दर्शनावरण के नाश हो जाने से अनन्त दर्शन के धारक सर्वदर्शी होते हैं, इस प्रकार इसमें अनन्त दर्शन और अनन्त ज्ञानरूप दो चतुष्टय का कथन किया है ।।१६।। नमो दर्शनमोहघ्ने क्षायिकामलदृष्टये। नमश्चारित्रमोहने विरागाय महौजसे ॥१७॥ टीका - दर्शनमोहघ्ने इति समर्थननिरूपणमेवमुत्तरत्रापि यथायोग्यम् । नमो नमस्कारोऽस्तु कस्मै दर्शनमोहध्ने क्षायिकामलदृष्टये, दर्शनमोहं हतीति दर्शनमोहहन् । तस्मै दर्शनमोहघ्ने क्षायिकामलदृष्टिः क्षायिकेन क्षायिकसम्यक्त्वेन अमला निर्मला दृष्टिः तस्मै क्षायिकामलदृष्टये नमः । नमस्कारोऽस्तु कस्मै चारित्रमोहघ्ने विरागाय चारित्रमोहं कर्म हतीति चारित्रमोहहन्, तस्मै चारित्र-मोहघ्ने। विरागः विगतो विनष्टो रागस्त्र्यादिलक्षणो यस्य स विरागस्तस्मै विरागाय | पुनः नमः कस्मै महौजसे महत् ओजः उत्साहो यस्य स महौजाः, तस्मै महौजसे नमः ॥१७।। अर्थ : दर्शनमोह का क्षय करने वाले तथा निर्मल क्षायिक सम्यग्दर्शन से युक्त आपको नमस्कार हो। चारित्र मोहनीय कर्म का नाश करने वाले, वीतरागी तथा महातेजस्वी भगवन् आपको नमस्कार हो। ये मोहनीय कर्म का नाश होने से होते हैं ॥१७॥
SR No.090231
Book TitleJinsahastranamstotram
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPramila Jain
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy