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* जिनसहस्रनाम टीका - २२३ * अर्थ : हे भगवन् ! आप ही अरहंत, सिद्ध, साधु तथा केवलीप्रणीत धर्मरूप शरण चतुष्टय तथा मंगल चतुष्टय की मूर्ति रूप हैं। भगवन् आप ही 'चतुरस्रा' सम्पूर्ण धी 'बुद्धि' के धारक होने से चतुरस्रधी हो अर्थात् आप द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव रूप से सर्व पदार्थों के ज्ञाता होने से चतुरस्रधी हो। भगवन्, आप ही पाँच ब्रह्म से निष्पन्न होने से पंचब्रह्ममय हो, पंच परमेष्ठी स्वरूप हो। हे भगवन् ! आप ही परम पावन (पवित्र) हो, अत: हे देव मुझको पवित्र करो। स्तुति करने वाले जिनसेन को हे देव ! पवित्र कीजिये।।१२।।
स्वर्गावतरणे तुभ्यं सद्योजातात्मने नम..
जन्माभिषेकवामाय वामदेव नमोस्तु ते॥१३॥
टीका - तुभ्यं नमः नमस्कारोऽस्तु । कस्मै सद्योजातात्मने सद्यस्तत्कालं जातः उत्पन्नः आत्मा यस्य स सद्योजातात्मा तस्मै सद्योजातात्मने। क्व स्वर्गावतरणे । हे वामदेव - वामो मनोहरो देवो वामदेव: तस्यामन्त्रणे। हे वामदेव! ते तुभ्यं नमोस्तु अस्माकं पादप्रणामोऽस्तु । कथंभूताय वामाय मनोहराय। क्व जन्माभिषेके मेरुस्नाने ।।१३।।
अर्थ : तत्काल ही जन्म है, अब आगे जो जन्म को धारण नहीं करेंगे उसे सद्योजातात्मा कहते हैं। जो स्वर्ग से आकर एक ही बार जन्म धारण करने वाले हैं ऐसे स्वर्गावतरण सद्योजातात्मा को नमस्कार हो । अर्थात् स्वर्ग से आकर एक जन्म धारण करने वाले आपको नमस्कार हो।
वामदेव-वाम-मनोहर-सम्बोधन में वामदेव ! मेरुपर्वत पर जन्माभिषेक करते समय अत्यन्त मनोहर दीखने वाले (जन्माभिषेक वाम) आपके लिए नमस्कार हो॥१३॥
इस श्लोक में गर्भकल्याणक और जन्मकल्याणक पूजा का कथन किया
सुनिष्क्रांतावघोराय परं प्रशममीयुषे । केवलज्ञानसंसिद्धावीशानाय नमोऽस्तु ते॥१४॥ टीका - ते तुभ्यं नमोऽस्तु । कस्मै ? अघोराय न घोरो रुद्रः अघोर: तस्मै